अल्मोड़ा – ग्रामीण सशक्तिकरण और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि में हवालबाग के प्रायोगिक फार्म में आयोजित कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम शानदार सफलता के साथ संपन्न हुआ। सात दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम ने प्रतिभागियों को मूल्यवान कौशल से सुसज्जित किया है और अल्मोडा में एक समृद्ध और टिकाऊ कृषक समुदाय की नींव रखी है। कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण युवाओं, विशेषकर महिलाओं के कौशल विकास गतिविधियों के माध्यम से अपनी आजीविका प्रथाओं में सुधार के प्रति संवेदनशील बनाना था, और यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आईसीएआर-वीपीकेएएस, अल्मोडा और अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना पर कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी (ए.आई.सी.आर.पी. ऑन पी.एच.ई.टी.) के तत्वावधान में आयोजित किया गया।

संस्थान के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने व्यक्तिगत और सामुदायिक विकास के लिए प्रशिक्षण के संभावित लाभों पर जोर देते हुए प्रशिक्षुओं को सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान अल्मोड़ा जिले के पांच गांवों (उडियारी, हवालबाग, पंचगांव, सयाली, कनालबुंगा) से कुल 28 महिला प्रतिभागी सक्रिय रूप से शामिल रहें।

साप्ताहिक प्रशिक्षण के दौरान, प्रतिभागियों को सीखने के व्यावहारिक अनुभवों की एक विस्तृत श्रृंखला के बारे में जानकारी दी गई, जिसमें मशरूम की खेती के विवरण से लेकर मधुमक्खी पालन की कला, पहाड़ी बडीं और टमाटर के पापड को सुखाने के लिए सोलर ड्रायर का उपयोग, सोया दूध से टोफू की तैयारी भी शामिल थी। उनकी आजीविका और कृषि आय में सुधार के लिए रागी आधारित मूल्य वर्धित उत्पाद जैसे लड्डू, बिस्कुट, नमकीन मशरूम अचार, जैम और स्क्वैश तैयार करना यावहारिक रूप से सिखाया गया। कार्यक्रम में स्थानीय रूप से उपलब्ध पौधों जैसे पाइन नीडल्स, लेमन ग्रास और रोज़मेरी से आवश्यक तेल निष्कर्षण और पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाने के लिए पाइन नीडल्स के अभिनव उपयोग के बारे में विस्त्रित रूप से जानकारी दी गई।

प्रशिक्षण की एक विशिष्ट विशेषता टिकाऊ कृषि पद्धतियों पर जोर रहा जिसमें प्रतिभागी को स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्रियों का उपयोग करके वानस्पतिक कीटनाशकों जैसे कि नीमास्त्र, अग्निआस्त्र, अमृत जल, अमृत धारा, संजीवनी, ब्रम्हास्त्र, पुष्प रसायन आदि की तैयारी और जैविक उर्वरकों जैसे कि जीवामृत, घनजेवामृत, बीजामृत की तैयारी सिखाई गई। पिरुल से पर्यावरण- अनुकूल उत्पाद जैसे कि पाईन ब्लोक और पौध उगाने के लिए पाईन पीट बनाने की विधि के बारे में बताया गया।

कार्यक्रम के समापन का विषेश आकर्षण मडुआ (रागी) से बने पारंपरिक व्यंजनों की एक प्रतियोगिता के साथ हुआ। प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त ज्ञान को शामिल करते हुए अपने पाक कला कौशल का प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में पारंपरिक व्यंजनों का जश्न मनाया गया और प्रतिभागियों की आत्मनिर्भरता की यात्रा को चिह्नित किया गया। प्रशिक्षुओं को उज्ज्वल भविष्य की दिशा में मार्गदर्शन करने और सफल प्रशिक्षुओं को प्रमाण पत्र वितरित किए गए और अधिकारियों के बहुमूल्य सुझावों और उत्साहवर्धक भाषण के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न हुआ।

कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. श्याम नाथ और डॉ. तिलक मंडल का प्रशिक्षण समन्वयक के रूप में कार्य अनुकरणीय रहा। इस पूरे कार्यक्रम में प्रतिभागी नए कौशल हासिल करने और टिकाऊ प्रथाओं की गहरी समझ विकसित करने में सक्षम हुए जो कृषि के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।