प्रधानमंत्री के आह्वान से प्रेरित होकर और मन की बात में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने और एकल उपयोग प्लास्टिक को खत्म करने के लिए, जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान,, अल्मोड़ा उत्तराखंड ने हिमालय में एकल उपयोग प्लास्टिक को कम करने के लिए चुनौतियों और अवसरों विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया । सेमिनार के दौरान हिमालय में प्लास्टिक प्रदूषण पर शोध की वर्तमान स्थिति एवं मुख्य निष्कर्षों पर प्रकाश डाला गया और यह पता चला कि प्रमुख झीलों, नदियों, ग्लेशियरों और स्थलीय वातावरणों से माइक्रोप्लास्टिक्स पाया गया है। लोगों के धारणा सर्वेक्षण में, हिमालय के अधिकतर जगहों से 1200 से अधिक प्रतिक्रियादाताओं के के उत्तर से यह पता चला कि लगभग 75% लोग मन की बात से प्रभावित हुए एवं आवश्यक व्यवहारिक परिवर्तनों को अपनाया है, जिसमें से 96% ने अपने क्षेत्र में प्लास्टिक कचरे की सफाई के अभियान में सकरात्मक रूप भाग लिया है।
माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा देश से एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को खत्म करने की अपील के बाद एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है और लोगों ने वैकल्पिक उत्पादों का उपयोग करके पुनर्चक्रण की प्रथा को अपनाया है और 87% लोग इको-फ्रेंडली विकल्पों के लिए अधिक मूल्य भुगतान करने के लिए तैयार हैं। इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि पिछले पांच वर्षों के दौरान देश में प्लास्टिक प्रदूषण, विकल्प और क्षरण पर अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
सेमिनार में केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख , जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिन्होंने प्लास्टिक बैन लगाए जाने के बाद अपने राज्यों में एकल प्रयोग प्लास्टिक के निस्तारण के लिए की जा रही कार्रवाई और नीति के कार्यान्वयन की स्थिति और उन्मूलन के लिए अपने राज्यों द्वारा की जा रही कार्रवाई पर दर्शकों को जानकारी दी गयी।
अनूप नौटियाल, सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ फाउंडेशन, देहरादून, उत्तराखंड के संस्थापक ने सेमिनार के मुख्य वक्ता के रूप में बताया कि हिमालय की नाजुक और संवेदनशील पारिस्थितिकी में एकल प्रयोग प्लास्टिक के निस्तारण का लक्ष्य हासिल करने के लिए एक जन आंदोलन की आवश्यकता है। उन्होंने इसके अलावा ग्रहणीय फील्ड डेटा कलेक्शन के महत्व को भी दर्शाया, जो हिमालय में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण समस्या का समाधान करने के लिए मददगार साबित है। प्रो सुनील नौटियाल, निदेशक, जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा, उत्तराखंड ने विशेष रूप से पर्यटन स्थलों में पारंपरिक व्यंजनों और भोजन की संस्कृति को पुनर्जीवित करने के महत्व पर प्रकाश डाला, ताकि हमारी सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देते हुए प्लास्टिक निर्मित प्री-पैक्ड खाद्य पदार्थों को कम किया जा सके। हिमालय में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण को रोकने एवं समाधान के लिए अंतर-संस्थागत अनुसंधान की आवश्यकता को मजबूत करने पर जोर दिया।