अल्मोड़ा- टाटिक में प्रातः हुई सड़क दुर्घटना में स्कूली शिक्षक सहित सात बच्चे घायल हो गये थे।जिसके बाद सुबह 9.30 बजे उन्हें बेस चिकित्सालय लाया गया।इनमें से तीन बच्चों की हालत काफी नाजुक थी। अव्यस्थाओं का आलम यह रहा कि दोपहर 1 बजे तक केवल दो बच्चों को रेफर किया जा सका जबकि तीसरे बच्चे के लिए सब एम्बुलेंस का इन्तजार करते रहे।गंभीर रूप से घायल बच्चे को निजी एम्बुलेंस में दोपहर 12.30 हल्द्वानी भेजा गया।इसके बाद सरकारी 108 एम्बुलेंस में जब दूसरे बच्चे को रखा गया तो वो स्टार्ट ही नहीं हुई।वहां पर मौजूद दर्जनों लोगों के द्वारा धक्का लगाए जाने पर एम्बुलेंस स्टार्ट हुई।जबकि तीसरे बच्चे के लिए एम्बुलेंस का इन्तजार होता रहा।सोचने वाली बात यह है कि जब बच्चे इतने गंभीर थे तो उन्हें प्राथमिक चिकित्सा के बाद तुरन्त रेफर क्यों नहीं किया गया।बेस चिकित्सालय का आलम यह है कि एम्बुलेंस अस्पताल में खड़ी है लेकिन उसकी स्थिति इतनी दयनीय है कि उसमें गंभीर रूप से घायल बच्चे को ले जाने की हिम्मत 108 का चालक नहीं जुटा पाता तब प्राईवेट एम्बुलेंस बुलाई जाती है।इसके एक घन्टें के बाद जब वहां मौजूद लोग अस्पताल की अव्यस्थाओं पर सवाल उठाते हैं तो दो घायल बच्चों को एक ही एम्बुलेंस में रख दिया जाता है।उसके बाद एम्बुलेंस की हालत देखकर एक बच्चे को बाहर निकाला जाता है।घायल बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार सोचनीय है।उसके बाद का आलम यह है कि एम्बुलेंस स्टार्ट नहीं होती है और वहां मौजूद दर्जनों लोगों के द्वारा इसे धक्का लगाया जाता है। सोचनीय विषय है कि यदि रास्ते में एम्बुलेंस बन्द होती है तो वहां धक्का लगाने के लिए कैसे व्यवस्था होगी।इसके बाद तीसरे बच्चे को ले जाने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था की जाती है लेकिन दोपहर 1 बजे तक समाचार लिखे जाने तक एम्बुलेंस वहां नहीं पहुंचती है।बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पूर्व दर्जामंत्री बिट्टू कर्नाटक, पूर्व विधायक रघुनाथ सिंह चौहान सहित अनेक जनप्रतिनिधि बेस चिकित्सालय में मौजूद दिखे‌। लेकिन व्यवस्थाओं के सामने सब बेबस दिखे। सोचने वाली बात है कि इतना बड़ा मेडिकल कालेज यहां पर होने पर भी क्यों मरीजों को बाहर रेफर करने की आवश्यकता पड़ रही है। बिल्कुल दयनीय स्थिति में पड़ी एम्बुलेंस क्या लोगों की जिन्दगी बचाने के लिए काफी हैं? भीषण कार हादसे के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि यदि भविष्य में इससे बड़ी कोई दुर्घटना होती है तो क्या लोगों की जिन्दगी बेस चिकित्सालय एवं इन धक्का लगाने वाली एम्बुलेंस के भरोसे टिक पाएगी।