(भावना मल्होत्रा)

बड़ी चिंता का विषय है आपसी विवादों को लेकर परंपरा एवं संस्कृति से इस प्रकार की छेड़छाड़ जो कि समाज को एक नई प्रकार की कुरीति से जोड़ने का कार्य कर रही है हिंदू संस्कृति की वर्षों पुरानी परंपरा को इस तरह छेड़ा जाना हमारी भारतीय संस्कृति के लिए ही नहीं वरन संपूर्ण मानव समाज के लिए भी घोर चिंता का केंद्र बिंदु है । वर्तमान समय में यह एक चर्चा का विषय मात्र अथवा हंसी मजाक का बिंदु हो सकता है, किंतु यदि इस मसले की गंभीरता को देखा जाए तो संस्कृति के लिए इसके परिणाम विनाशकारी हैं।
पीढी दर पीढी से हम देखते चले जा रहे हैं कि प्रत्येक वर्ष हम दशहरे के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाते हुए इस पुतले का दहन करते चले आए हैं। लेकिन यह क्या! आज हमारे ही समाज में अच्छाई थक के घर लौट गई और बुराई का रावण हंसता हुआ यथा स्थान खड़ा रहा। इस घटना के मर्म को समझा जाना आवश्यक है। वर्तमान परिपेक्ष में जहां नई पीढ़ी वैसे ही अपनी संस्कृति और परंपराओं से दूर होती चली जा रही है ऐसे में इस प्रकार की घटनाओं का होना समाज के लिए काफी सोचनीय विषय है। विशेषकर बुद्धिजीवियों के नगर में इस प्रकार की घटना वास्तव में सोचनीय विषय है।
सोचने का विषय इसलिए भी है कि क्या परंपराएं दे रहे हैं हम अपनी भावी पीढ़ियों को विरासत में अगर इस तरीके की घटनाएं भविष्य में भी होती रही तो सोचिए एक बार ध्यान से किस लिए मनाया जाएगा दशहरा? क्या अर्थ रहेगा दशहरे का? जब रावण ही नहीं मरेगा, तो किस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम लौट पाएंगे अयोध्या और कैसे मनेगी दिवाली?
हमारा समाज अपने नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से विमुख होता चला जाएगा और धीरे धीरे यह सभ्यता और संस्कृति यहीं दम घोट देगी।