केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मंत्री परषोत्तम रूपाला ने मत्स्य पालन विभाग की 9 साल की प्रमुख उपलब्धियों के बारे में मीडिया को जानकारी दी। केंद्रीय मंत्री ने मत्स्य पालन क्षेत्र पर फोकस करते हुए कहा कि भारत में, यह आशाजनक क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर 2.8 करोड़ से अधिक मछुआरों और मत्स्य किसानों और मूल्य श्रृंखला में लगे कई लाख मछुआरों और मत्स्य किसानों को आजीविका, रोजगार और उद्यमिता प्रदान करता है। यह क्षेत्र उच्च रिटर्न भी प्रदान करता है । वैश्विक मत्स्य उत्पादन में लगभग 8% हिस्सेदारी के साथ भारत तीसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है । विश्व स्तर पर जलीय कृषि उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है और भारत शीर्ष झींगा उत्पादक और निर्यातक देशों में से एक है । रूपाला कहा कि पिछले नौ वर्षों के दौरान भारत सरकार ने मात्स्यिकी और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र विकास और मछुआरों और मत्स्य किसानों की आय बढ़ाने के लिए परिवर्तनकारी पहल की है। केंद्रीय मंत्री ने कुछ प्रमुख पहलों और परिणामों पर प्रकाश डाला :
1. मात्स्यिकी क्षेत्र में अब तक का सबसे अधिक निवेश: रूपाला ने सूचित किया की पिछले 9 वर्षों के दौरान, भारत सरकार ने मात्स्यिकी और जलीय कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाया है। 2015 से केंद्र सरकार ने 38,572 करोड़ रुपये के कुल निवेश को मंजूरी दी है या घोषणा की है। इसमे शामिल है:
• नीली क्रांति योजना के तहत 5,000 करोड़ रु/- का निवेश;
• मात्स्यिकी और जलकृषि अवसंरचना विकास निधि (एफ़आईडीएफ़) के लिए 7,522 करोड़ रु/- ;
• प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 20,050 करोड़ रु/- का निवेश ;
• केंद्रीय बजट 2023-24 में पीएमएमएसवाई के अंतर्गत 6,000 करोड़ रुपये की उप-योजना की
घोषणा की गई ;
केंद्रीय मंत्री ने सूचित किया की प्रमुख मात्स्यिकी योजना अर्थात प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) 2020-21 से कार्यान्वयन के अधीन है और यह देश में मात्स्यिकी और जलीय कृषि क्षेत्र में अब तक का सबसे अधिक निवेश है। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए 2020-21 से 2022-23 तक पिछले तीन वर्षों के दौरान पीएमएमएसवाई के तहत 14,656 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, इस प्रकार परिकल्पित निवेश का ~73% हासिल कर लिया गया है।
2. रिकॉर्ड राष्ट्रीय मत्स्य उत्पादन : केंद्रीय मंत्री ने सूचित किया की भारत की आजादी के समय मात्स्यिकी क्षेत्र पूरी तरह से एक पारंपरिक गतिविधि के रूप में थी । पिछले पचहत्तर वर्षों में, यह क्षेत्र अपने पारंपरिक और छोटे पैमाने की प्रकृति को बरकरार रखते हुए धीरे – धीरे एक वाणिज्यिक उद्यम में परिवर्तित हो गया है । 1950 से लेकर 2021-22 के अंत तक राष्ट्रीय मत्स्य उत्पादन में 22 गुना वृद्धि हुई है । पिछले 9 वर्षों के दौरान, भारत का वार्षिक मत्स्य उत्पादन 95.79 लाख टन (2013-14 के अंत में) से बढ़कर 162.48 लाख टन (2021-22 के अंत में) के सर्वकालिक रिकॉर्ड तक पहुंच गया है यानी 66. 69 लाख टन की वृद्धि हुई है । इसके अलावा, वर्ष 2022-23 के लिए राष्ट्रीय मत्स्य उत्पादन भी 174 लाख टन (अनंतिम आंकड़े) तक पहुँचने या उससे अधिक होने की उम्मीद है, जो 2013-14 की तुलना में 81% की वृद्धि है ।

3.अंतर्देशीय और जलीय कृषि उत्पादन में दोगुना वृद्धि : रूपाला ने सूचित किया की अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जलीय कृषि द्वारा मत्स्य उत्पादन 1950-51 में मात्र 2.18 लाख टन से बढ़कर 2021-22 में 121.12 लाख टन हो गया। अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जलीय कृषि उत्पादन दोगुना हो गया है क्योंकि यह 2013-14 के अंत में 61.36 लाख टन से बढ़कर 2021-22 के अंत में 121.12 लाख टन हो गया है। 2022-23 के लिए संकलित अनंतिम डेटा से यह भी संकेत मिलता है कि इस उप-क्षेत्र द्वारा वर्ष 2022-23 के दौरान कम से कम 10 लाख टन मत्स्य उपलब्ध हुई है। हालांकि अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जलीय कृषि उत्पादन को 61.36 लाख टन तक पहुंचने में 63 साल लग गए, उतनी ही मात्रा पिछले 9 नौ वर्षों में हासिल कर ली गई है जिसमें जल कृषि का एक अहम योगदान है । ये उत्पादन आंकड़े जलीय कृषि किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास में एक शानदार उपलब्धि है। यह रोजगार, आय और उद्यमिता के स्रोत के रूप में मात्स्यिकी और जलीय कृषि क्षेत्र में युवाओं की बढ़ती रुचि को भी इंगित करता है। वास्तव में, एफएओ-स्टेट ऑफ वर्ल्ड फिशरीज एंड एक्वाकल्चर 2022 (एसओएफआईए, 2022) के अनुसार,भारत दुनिया में सबसे बड़ा अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन करने वाला देश है।
4.समुद्री खाद्य निर्यात दोगुना: केंद्रीय मंत्री ने सूचित किया की 2013-14 के बाद से भारत का समुद्री खाद्य निर्यात दोगुना हो गया है। 2013-14 में जहां समुद्री खाद्य का निर्यात 30,213 करोड़ रुपये था, वहीं यह वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान बढ़कर 63,969.14 करोड़ रुपये हो गया है, वैश्विक बाजारों में महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद 111.73% की वृद्धि । आज, भारतीय समुद्री खाद्य 129 देशों में निर्यात किया जाता है, जिसमें सबसे बड़ा आयातक यूएसए है । दरअसल, 2014-15 से पहले के 9 वर्षों यानी 2005-06 से 2013-14 की अवधि में 1.20 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 2014-15 से 2022-23 के 9 वर्षों की अवधि के लिए संचयी निर्यात का मूल्य 3.41 लाख करोड़ रुपये रु/- है ।
5.दोगुना खारा जल कृषि उत्पादन : रूपाला ने कहा कि खारा जल कृषि जिसमें झींगा (शृंप) की खेती अग्रणी है, सरकारी नीतिगत हस्तक्षेपों द्वारा हजारों विविध छोटे जलीय कृषि किसानों की एक सफलता की कहानी है। पिछले 9 वर्षों में झींगा की खेती और निर्यात में तेजी आई है, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और तमिलनाडु राज्यों से । देश का झींगा उत्पादन 2013-14 के अंत में 3.22 लाख टन से 267% बढ़कर 2022-23 के अंत में रिकॉर्ड 11.84 लाख टन (अनंतिम आंकड़े) हो गया है । इसी प्रकार, झींगा निर्यात 2013-14 के अंत में 19,368 करोड़ रुपये था और यह 2022-23 के अंत में 123% की वृद्धि के साथ दोगुना से अधिक बढ़कर 43,135 करोड़ रुपये हो गया है ।
6.सतत विकास दर और राष्ट्रीय सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) और कृषि जीवीए में मात्स्यिकी क्षेत्र का बढ़ा हुआ योगदान: केंद्रीय मंत्री ने सूचित किया की भारत का मात्स्यिकी क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे विकसित होकर देश के सामाजिक-आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया है। भारत में मात्स्यिकी क्षेत्र ने 2014-15 से 2021-22 तक 8 साल की अवधि के लिए 8.61% (स्थिर मूल्यों पर) की निरंतर वार्षिक औसत वृद्धि दर दिखाई है। 2014-15 से 2021-22 तक आठ साल की अवधि के दौरान, मात्स्यिकी क्षेत्र का जीवीए 2013-14 में 76,487 करोड़ रु/- से बढ़कर 1,47,518.87 करोड़ रुपये (स्थिर मूल्यों पर) हो गया है और 2013-14 में 98,189.64 करोड़ रु/- से बढ़कर 2021-22 में 2,88,526.19 करोड़ रु/- हो गया है (वर्तमान मूल्यों पर)। यह क्षेत्र राष्ट्रीय जीवीए में 1.069% और कृषि जीवीए में 6.86% का योगदान देता है। वास्तव में, राष्ट्रीय जीवीए में मात्स्यिकी क्षेत्र का योगदान 2013-14 के अंत में 0.844% से बढ़कर 2021-22 के अंत में 1.069% हो गया है (स्थिर मूल्यों पर) और कृषि जीवीए में, मात्स्यिकी क्षेत्र का योगदान 44.42% बढ़ गया है; 2013-14 के अंत में यह 4.75% था और इसकी तुलना में 2021-22 के अंत में यह बढ़कर 6.86% हो गया है (स्थिर मूल्यों पर)।
7.मछुआ बंधुओं और मत्स्य किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के माध्यम से संस्थागत ऋण: रूपाला ने सूचित किया की भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में मछुआरों और मत्स्य किसानों को उनकी कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहयोग देने के लिए केसीसी सुविधा प्रदान की है । अब तक, मछुआरों और मत्स्य किसानों को 1,42,458 केसीसी कार्ड जारी किए गए हैं।
8.मत्स्यन बन्दरगाह (एफएच) और मत्स्य उतराई केंद्र (एफएलसी) में इनफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान : रूपाला ने कहा कि मत्स्यन बन्दरगाह (एफएच) और मत्स्य उतराई केंद्र (एफएलसी) मत्स्यन जहाजों के लिए सुरक्षित लैंडिंग, बर्थिंग, लोडिंग और अनलोडिंग सुविधाएं प्रदान करते हैं। आधुनिक मत्स्यन बंदरगाहों और मत्स्य उतराई केन्द्रों का विकास मात्स्यिकी संसाधनों की पोस्ट हार्वेस्ट गतिविधि के लिए महत्वपूर्ण है। पिछले 9 वर्षों के दौरान, भारत सरकार ने नीली क्रांति योजना के तहत 1423.28 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत पर 13 मत्स्यन बंदरगाहों और मत्स्य उतराई केन्द्रों के निर्माण/आधुनिकीकरण के परियोजना प्रस्तावों को मंजूरी दी है; फिशेरीस एंड एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एफआईडीएफ) के तहत 5087.97 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत पर 46 मत्स्यन बन्दरगाहों और मत्स्य उतराई केंद्रों का निर्माण/विस्तार के लिए मंजूरी; और 2517.04 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत पर प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत 48 मत्स्यन बंदरगाहों और मत्स्य उतराई केंद्रों का निर्माण/आधुनिकीकरण/रखरखाव के लिए मंजूरी दी गई है ।
9.सागर परिक्रमा यात्रा: सागर परिक्रमा यात्रा के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए रूपाला ने कहा कि
सागर परिक्रमा यात्रा आउटरीच कार्यक्रम मार्च 2022 से गुजरात से पश्चिम बंगाल तक एक पूर्व-निर्धारित समुद्री मार्ग पर शुरू किया गया है, जिसका लक्ष्य भारत के लगभग 8000 किमी तटरेखा को कवर करना है । रूपाला ने कहा कि यात्रा का मुख्य उद्देश्य मछुआरों से उनके दरवाजे पर मिलना और उनके मुद्दों और शिकायतों को समझना, स्थायी मत्स्यन को बढ़ावा देना और सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों का प्रचार करना है। अब तक, 7 चरणों में 39 स्थानों पर लगभग 3600 किलोमीटर की तटरेखा को पश्चिमी तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, दमन और दीव, केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव तथा पुडुचेरी में माही में कवर किया गया और यह गुजरात के मांडवी से शुरू होकर केरल के विरिनजाम पर समाप्त हुआ । 1.21 लाख मछुआरों ने व्यक्तिगत रूप से बैठकों में भाग लिया और यात्रा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया, जिससे लाखों लोग लाभान्वित हुए। कार्यक्रम में मात्स्यिकी क्षेत्र, विशेष रूप से मछुआरों के कल्याण की बेहतरी के लिए सहयोग को बढ़ावा देने और जागरूक निर्णय लेने की परिकल्पना की गई है।
10. प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के अंतर्गत समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस): केंद्रीय मंत्री ने सूचित किया की पीएमएमएसवाई के तहत, मछुआ बंधुओं, मत्स्य किसानों, मत्स्य श्रमिकों और मत्स्य पालन से संबंधित गतिविधियों में सीधे तौर पर शामिल व्यक्तियों को दुर्घटना बीमा कवर प्रदान किया जाता है, जिसका पूरा प्रीमियम वहन केंद्र और राज्य सरकार द्वारा साझा किया जाता है। आकस्मिक मृत्यु या स्थायी विकलांगता के लिए 5 लाख रुपये, आकस्मिक स्थायी आंशिक विकलांगता के लिए 2.5 लाख रुपये और अस्पताल में भर्ती होने पर 25,000 रुपये प्रदान किए जाते हैं। इस योजना के तहत 2021-22 के दौरान कुल 29.11 लाख और 2022-23 के दौरान 33.21 लाख लोगों का नामांकन हुआ है। पूर्व में नीली क्रांति योजना के तहत, मृत्यु या स्थायी पूर्ण विकलांगता के लिए 2 लाख रुपये, आंशिक स्थायी विकलांगता के लिए 1 लाख रुपये और अस्पताल में भर्ती होने के खर्च के लिए 10,000 रु/- दुर्घटना बीमा प्रदान किया गया था।
11.सहकारी समितियां और मत्स्य किसान उत्पादक संगठन (एफएफपीओ): रूपाला ने कहा कि सामूहिकता को बढ़ावा देने और मात्स्यिकी सहकारी समितियों और मत्स्य किसान उत्पादक संगठनों (एफएफपीओ) की बारगेनिंग पावर को बढ़ाने के उद्देश्य से, उनके सशक्तिकरण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं । एसएफएसी, एनएएफईडी, एनसीडीसी और एनएफडीबी जैसी कार्यान्वयन एजेंसियों ने कुल 2192 एफएफपीओ के गठन और विकास की परिकल्पना की है। इस पहल में सहयोग देने के लिए, पीएमएमएसवाई के तहत 541.35 करोड़ रुपये का परिव्यय आवंटित किया गया है।
12. समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा के लिए समुद्री मछली पकड़ने वाले जहाजों पर पोत संचार और सहायता प्रणाली का राष्ट्रीय रोल आउट: रूपाला ने सूचित किया की भारत सरकार ने प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत एक लाख मत्स्यन जहाजों पर उपग्रह-आधारित पोत संचार और सहायता प्रणाली स्थापित करने के लिए 364 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है जिसका कार्यान्वयन भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड के माध्यम से किया जाएगा । इस तकनीक को अंतरिक्ष विभाग, इसरो द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। ये उपकरण समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे, जिससे वे अपने परिवारों से जुड़े रहेंगे और तूफान एवं चक्रवात के दौरान और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पास मछली पकड़ने के दौरान सहायता प्राप्त कर सकेंगे। पारंपरिक मछुआरों के कल्याण के लिए यह परिवर्तनकारी परियोजना एक आत्मनिर्भर भारत पहल है जो अगले 18 महीनों में पूरी हो जाएगी