आद्र भूमि और आर्थिक रूप से समद्ध माने जाने वाली असम की बराक घाटी के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक वृहद रणनीति पर साझा कार्य करेंगंे। यह बात विभिन्न वक्ताओं ने यहां असम विश्वविद्यालय सल्चर में आयोजित कार्यशाला के दौरान कही। अल्मोड़ा गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी से राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वृहद बौद्धिक विमर्श में जाने माने विषय विशेषज्ञों और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। विभिन्न शोधार्थियों, कृषकों और हितधारकों के बीच इस बात पर गंभीर ंिचतन किया गया कि किस प्रकार इस घाटी में सतत् विधि से हस्तक्षेप पर यहां का समग्र संरक्षण किया जाए। यहां प्रतिभाग कर रहे राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अधिकारी इं0 किरीट कुमार जी ने बताया कि बुधवार को आयोजित इस कार्यशाला में बराक की वृहद घाटी में औषधीय पौधों, के साथ अन्य संकटग्रस्त पादन और जंतुओं के संरक्षण के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। अन्य हिमालयी राज्यों के विभिन्न संस्थानों के अनुभवों और प्रयोगों को भी संज्ञान में लिया जा रहा है। वन पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के निदेशक डाॅ आर0 कोडाली, वरिष्ठ वैज्ञानिक व विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ आर0 एम0 पंत, प्रो0 एस0 के बारिक, रजिस्ट्रार डाॅ अरूण ज्योति नाथ , प्रो0 अरूण सर्राफ, शैलेस पवार सहित अनेक विशेषज्ञों और चाय बागानों से जुड़े राज्य सरकार के अधिकारियों ने इस कार्यशाला में चाय बागानों की स्थिति, क्षेत्र में रासायनिक खादों के उपयोग, बाड़ व अन्य प्राकृतिक घटनाओं का घाटी पर प्रभाव, क्षेत्र में आपदा राहत के कार्यों, में हस्तक्षेप व अध्ययनों के बारे में चर्चा की और राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के सहयोग से इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। तकनीकी सत्र में इस घाटी में करबी अंगलोंग, दीमा हिसाउ आदि पर्वतीय जिलों के किए गए प्रयासों के बाद सफल उदाहरणों पर चर्चा की गई। जिसमें मेघालय और नेपाल के साथ सिक्किम में ग्रामीण पर्याटन, स्थानीय संसाधनों के सतत उपयोग पर मंथन किया गया और भविष्य में मंत्रालय के माध्यम से इस दिशा में और अनुसंधानों को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया। सभी विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र की जैव विविधता को अक्षुण बनाने और जल संसाधनों के सरंक्षण पर विशेष जोर दिया और इसे भारत ही नहीं एशिया के लिए महत्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर एनएमएचएस की ओर से इं0 एस0 आर0 अली, जगदीश चंद्र आदि ने कार्यशाला में सहयोग किया।