इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD), गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान (NIHE), और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC), भारत सरकार, मिल कर “रीथिंकिंग इकोसिस्टम बेस्ड अप्रोच (ई.बी.ए.) फॉर वाटर, लाइवलीहुड्स, एंड डिजास्टर रिस्क रिडक्शन इन द इंडियन हिमालया” विषय पर एक बहुहितधारक चर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है जिसके दूसरे दिवस में विभिन्न पर्यावरण मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया जिसका मुख्य विषय “डेवलपिंग शेयर्ड अंडरस्टैंडिंग ऑन ईबीए- प्रिंसिपल्स एंड डिजाईन क्राइटेरिया एंड स्टैंडर्ड्स” रहा।
कार्यक्रम के द्वितीय दिवस की शुरूआत करते हुए पर्यावरण संस्थान के निदेशक प्रो0 सुनील नौटियाल ने कार्यक्रम के प्रथम दिवस की संक्षिप्त जानकारी दी। तत्पश्चात संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ0 इन्द्र दत्त भट्ट ने पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण विषय की संक्षिप्त पृष्ठभूमि तथा अग्रिम कार्यक्रम की रूप रेखा से अवगत कराया। संस्थान के बर्हिस्थाने पादप कुंज (सूर्यकुंज) में आयोजित चर्चा में विभिन्न संस्थानों से आए विषय विशेषज्ञों ने पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण (ई0बी0ए0) के संदर्भ में हिमालयी क्षेत्र की समस्याओं तथा संभावित उपायो पर चर्चा की।
सभी प्रतिभागियों एवं विषय विशेषज्ञों ने तीन अलग-अलग समूहों में हिमालयी क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण अपनाने के फलस्वरूप पानी की कमी, आजीविका वृद्धि तथा आपदा जोखिम न्यूनीकरण विषय पर गहन मंथन किया। जल सुरक्षा के संदर्भ में सभी चुनौतियों पर चर्चा की गयी जिससे यह निष्कर्ष निकला कि पारम्परिक तकनीकों (गुरूत्वाकर्षण) आधारित सिचाई सुविधाओं के उचित प्रबंधन, वन संरक्षण एवं जल असुरक्षा के प्रमुख कारकों की पहचान करने की आवश्यकता है।
चर्चा के दौरान ई0बी0ए0 संकेतकों जैसे पानी की गुणवत्ता, जल स्रोतो पर निर्भरता और जल स्रोतों का मानचित्रीकरण एवं आकलन करने के सुझाव दिये गये। पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका वृद्धि के संदर्भ में औषधीय तथा जलवायु के अनुकूल फसलों का चुनाव करने के सुझाव भी दिये गये। परिचर्चा के दौरान कहा गया कि किसी भी योजना को क्रियान्वित करने के लिए योजनाओं के दिशा-निर्देशों को अनुकूलित एवं संकल्पित करने की आवश्यकता होती है। साथ ही सेक्टर विशिष्ट सफलता की कहानियों की पहचान करने की भी आवश्यकता है और किसी भी योजना या परियोजना की योजना बनाते समय प्रारंभिक चरण में हितधारकों और लाभार्थियों को शामिल करना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। इसी क्रम में कार्यशाला में तीन प्रतिभाग समूहों द्वारा उपरोक्त ज्वालान्त्शील मुद्दों पर चर्चा की गयी. इसमें प्रथम समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए डा० बी0एस0 कालाकोटी ने कहा कि आजीविका वृद्धि हेतु बहुदेश्यीय पादपों जैसे कि कीवी, गेंदा, हल्दी तथा अन्य फलदार पौधों आदि के कृषिकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने बताया कि पारम्परिक कृषि पद्धतियों के आकलन एवं दस्तावेजीकरण की अत्यंत आवश्यकता है ताकि हम सभी पारिस्थितिकीय तंत्र को मजबूत करने में अपनी भागीदारी निभा सकें। उन्होनें कहा कि पारम्परिक रूप से पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहे लोगो को वित्तीय सहायता देकर प्रोत्साहित किया जा सकता है। साथ ही ईबीए दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम हितधारकों की क्षमता निर्माण और ईबीए के लिए उचित ढांचा या कार्यप्रणाली विकसित करना है।
कार्यक्रम के द्वितीय समूह द्वारा जल संकट के समाधान हेतु ऊर्जा आधारित विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा की गई। इसके साथ ही जल सुरक्षा, पहाड़ी शीर्ष वन के संरक्षण और प्रकृति में गड़बड़ी के प्रमुख चालकों की पहचान करने के संदर्भ में आ रही चुनौतियों पर भी चर्चा की गई. साथ ही यह भी कहा गया कि किसी भी योजना को क्रियान्वित करने के लिए मुख्य बिन्दु बाधाओं पर चर्चा करना जरूरी होता है। जल सुरक्षा से निपटने के लिए, हमें विज्ञान नीति और अभ्यास के बीच अंतर को पाटने और स्थानीय संगठनों की भूमिका बढ़ाने की जरूरत है।
कार्यक्रम में तृतीय समूह द्वारा आपदा जोखिम न्यूनीकरण में ई0बी0ए0 की महत्वता पर परिचर्चा की गई। समूह की परिचर्चा में डा0 एस0पी0 सती द्वारा हिमालयी परम्परा की महत्वता पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि पारम्परिक ज्ञान का समावेश नीति निर्धारण में किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण को मजबूत करके ही आपदाओं को कम करने में भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है। साथ ही समूह में उपस्थित डॉ0 नवीन जुयाल, डॉ0 वन्दना शाक्या, डॉ0 अम्बा जमीर, डॉ0 पी0सी0 तिवारी ने कहा वर्तमान में मौजूद योजनाओं जैसे सड़क निर्माण, इमारत निर्माण आदि में पारम्परिक ज्ञान का समावेश करना अति आवश्यक है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण को जनमानस के साथ जोड़ा जा सकता है।
कार्यशाला के तृतीय दिवस के अन्तिम चरण में 11 राज्यों के 27 विषय विशेषज्ञों के साथ सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों एवं शोधार्थियों सहित कुल 80 प्रतिभागियों ने सूर्यकुंज का भ्रमण किया जिसमें संस्थान के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र द्वारा शोध कार्यों, क्रियान्वित परियोजनाओं आदि का प्रदर्शन किया गया। इस भ्रमण के दौरान नवगृह वाटिका, अष्टवर्ग वाटिका, नक्षत्र वाटिका, पोषक वाटिका, जल संरक्षण तकनीक, औषधीय पादप नर्सरी आदि मुख्य आकर्षण एवं परिचर्चा के केन्द्र रहे।
कल कार्यशाला के अंतिम दिवस पर अंतर-क्षेत्रीय समन्वय के लिए संस्थागत नवाचार तथा स्केलिंग स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर विचार मंथन किया जाएगा.
इस कार्यक्रम के उपरान्त ई.बी.ए. के माध्यम से हिमालयी क्षेत्र हेतु नीति निर्धारण में सहायता प्राप्त होगी.