अल्मोड़ा – गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल, अल्मोड़ा में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों की 3हिमालयी वनों के पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली और सेवाओं का पादप कार्यात्मक लक्षण आधारित मूल्यांकन 3 विषय पर तीन दिवसीय (8810 नवम्बर 2023½ प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ। तीन दिवसीय इस कार्यशाला में देश के विभिन्न क्षेत्रों के आईएफएस अधिकारी श्री रमेश कुमार गुप्ता, श्री साक्षी मलिक, श्री एस के सिंह, श्री महातिम यादव, सुश्री मीणा कुमारी मिश्रा, श्री पी के जयकुमार शर्मा, श्री केशव जयन्त वाबले और श्री ज्ञेया रागुल गेशन बी भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ संस्थान के निदेशक प्रो० सुनील नौटियाल के स्वागत भाषण से हुआ। अपने स्वागत उदबोधन में प्रो० नौटियाल ने सभी अधिकारियों को इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में अपनी सहभागिता हेतु धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से हम वन संरक्षण और बेहतर प्रबंधन पर अपने ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे। उन्होंने भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में जल सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन, समाज की आजीविका, सतत विकास के लिए जैव विविधता जैसे ज्वलन्त मुद्दों से सबको अवगत कराया।

संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जे.सी. कुनियाल ने सभी अधिकारियों को संस्थान तथा इसकी क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर किये जा रहे विकासात्मक कार्यों और हितधारकों द्वारा लिये जा रहे लाभों से सबको अवगत कराया। उन्होंने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम वन अधिकारियों को वन संरक्षण, हिमालयी पारिस्थितिकी और पारिस्थितिक पर्यटन के बीच संबंधों की गहरी समझ को बढ़ावा देकर क्षेत्र को प्रभावित करने वाली वानिकी समस्याओं के समाधान हेतु लाभदायक होगा। इसका उद्देश्य हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक स्थायी भविष्य की दिशा में काम करने के लिए विविध हितधारकों को एकजुट करने और उन्हें बहुतायत रूप से लाभान्वित करना है। तदोपरान्त संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आई.डी. भट्ट ने तीन दिवसीय इस कार्यशाला के क्रियाकलापों से सबको अवगत कराया।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. पंकज रतूड़ी, केन्द्र प्रमुख, जैवसंसाधन विकास विभाग, डाबर इंडिया लिमिटेड ने सभी अधिकारियों को औषधीय पौधों का अधिकाधिक लाभ कैसे उठा सकते हैं और डाबर इण्डिया तथा इसके उत्पादों से सबको अवगत कराया। उन्होंने कहा कि डाबर इंडिया ने पुदीन हरा से अपनी शुरुआत की थी और आज कम्पनी 500 से भी ज्यादा उत्पादों का निर्माण कर कई लोगों को स्वरोजगार प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में औषधीय पादपों का भण्डार है, ज्ञान और संसाधनों की अज्ञानता के कारण इसका समुचित प्रयोग नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कुटकी, अगरकरा, सतावरी, तेजपत्ता, अतीस, रतनजोत, पीपली, गूगल, तिमूर और कचनार औषधीय पादपों और इनके प्रयोग से भी सबको अवगत कराया। चन्दन और इसके तेल से च्वयनप्राश और वेस्ट एप्पल से रेस्टोरा गोल्ड टॉनिक के निर्माण से भी सबको अवगत कराया।

कार्यक्रम के प्रथम तकनीकी सत्र की शुरुआत कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. देवेन्द्र पाण्डे, से नि. आईएफएस और पूर्व महानिदेशक, भारतीय वन सर्वेक्षण के 3 हिमालयी वनों की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की निगरानी के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति का अनुप्रयोग 3 विषय पर व्याख्यान से हुई। अपने व्याख्यान में उन्होंने हिमालय को भारतवर्ष के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि हिमालय जल का मुख्य स्रोत है क्योकि अधिकतर नदियों का उदगम स्थल इसी से है, जिसे लोग पानी बिजली और अन्य माध्यम में प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 283 दशकों में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है जिसके परिणामस्वरूप आज सभी क्षेत्रों में डिजिटिज़ेशन सम्भव हुआ है। रिमोट सेंसिंग, सेटेलाइट, ड्रोन और वन निगरानी में इसके प्रयोग से भी सबको अवगत कराया। डा. पाण्डे ने कहा कि अभूतपूर्व जलवायु परिवर्तन के कारण विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र में आपदाएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही है इसलिए वन, पर्यावरण, जलवायु और आपदा के बीच के संबंधों को समझना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्होंने विज्ञान और तकनीकी ज्ञान की जनमानस तक सुगम पहुंच बनाने और इसके धरातली स्तर पर अधिकाधिक उपयोग की भी अपील की।

कार्यक्रम के द्वितीय तकनीकी सत्र की शुरुआत प्रो० जफर ए रेशी, प्रोफेसर, कश्मीर विश्वविद्यालय के 13 पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली और सेवाओं का संयंत्र कार्यात्मक लक्षण आधारित मूल्यांकन: सिद्धांत, प्रक्रिया और नुकसान 3 विषय पर व्याख्यान से हुई। अपने व्याख्यान में उन्होंने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र जैव विविधिता, सांस्कृतिक विविधता, वन और प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में वनों का महत्वपूर्ण स्थान है ये हिमालय के स्थानीय समुदाय के जीवन, सांस्कृतिक और आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और साथ ही निचले क्षेत्रों को विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करते हैं। उन्होंने वन पारिस्थितिकी तंत्र और हिमालयी क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों और चुनौतियों जैसे जंगल की आग, धारों का सूखना, अस्थिर पर्यटन के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला और हिमालयी वन के बेहतर प्रबंधन और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए सामुदायिक भागीदारी का भी सुझाव दिया। इसके उपरान्त अधिकारियों को संस्थान के ग्रामीण तकनीकी परिसर, वन पर्यावरण- पुनर्स्थापना मॉडल सूर्यकुंज और सूर्य मंदिर, कटारमल का भ्रमण और इसकी जैव. विविधिता से अवगत कराया। कार्यक्रम का समापन संस्थान के वैज्ञानिक डा. के. एस. कनवाल के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। इस कार्यक्रम में ई. आशुतोष तिवारी, डा. सुमित राय, डा. आशीष पाण्डे, डा. सुरेश राणा, डा. सुबोध ऐरी, सजीश कुमार, महेश चन्द्र सती, ई. ओ. पी. आर्य आदि उपस्थित थे