विश्व जल दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
उभरता हुआ जल संकट और जल के गुणवत्ता में आये हुए अनचाहे बदलाव एक बड़ी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करता है जिससे पूरी दुनिया जूझ रही है। बारिश के मात्रा और समय में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, वृक्षों का अत्यधिक कटाव, गैर वैज्ञानिक तरीको से पानी का दोहन, भूजलस्तर में कमी, वर्षा के पानी के संकलन में कमियां, अपशिष्ट जल प्रबंधन में कमियां इन कारणों से विश्व में जल की स्थिति काफी गंभीर बनी हुयी है। आज जल का दोहन जल संरक्षण से काफी अधिक हो रहा है, जो एक चिंता का विषय पूरी मानव जाती को हो रहा है, जिसमे पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों का भविष्य भी दांव में लगा है।
इसी विषय को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में घोषित किया गया, तभी से इस दिन को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में छठा लक्ष जो की स्वच्छ पानी की उपलब्धता करना है के तहत संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष की विश्व जल दिवस थीम “बदलाव को गति” रखी है।
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के भूमि एवं जल संसाधन प्रबंधन केन्द्र एवं ई0आई0ए0सी0पी0 केन्द्र, कोसी कटारमल द्वारा विश्व जल दिवस ग्राम बिसरा में मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ भूमि एवं जल संसाधन प्रबंधन केन्द्र एवं ई0आई0ए0सी0पी0 केन्द्र के समन्वयक वैज्ञानिक-ई, ई0 महेन्द्र सिंह लोधी द्वारा किया गया, सर्वप्रथम उनके द्वारा सभी ग्राम वासियों का स्वागत करते हुए सभी वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय तथा कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में विस्तार से बताया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में उन्होनें भूमि गत जल की महत्ता एवं पर्यावरणीय आधारित जीवन शैली के विषय में विस्तार से बताया। इसी क्रम में ई. वैभव गोसावी ने जल-श्रोतों के पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यांकन और प्रबंधन के माध्यम से हिमालय में जल सुरक्षा के परियोजना के उपर प्रकाश डाला। वैज्ञानिक डॅा0 वसुधा अग्निहोत्री द्वारा पूर्व काल में किस प्रकार जल को संरक्षित किया जाता था एवं वर्तमान समय में हम किस प्रकार इसे संरक्षित कर सकतें है इस विषय में ग्रामवासियों से चर्चा की और साथ ही में बताया कि किस प्रकार हम जल की गुणवत्ता की जांच करते है। ई. आषुतोष तिवारी ने भूमिगत जल के स्रोतों के आस-पास के वातावरण को साफ रखने की बात कही तथा बताया कि अगर हम स्रोतों के आस-पास स्वच्छता का ध्यान नहीं रखेगें तो इसकी वजह से हमारा पेय जल दूषित हो सकती है।
कार्यक्रम में ग्रामीणों को जल के मात्रा का मापन, जल के स्रोतों को कैसे बचाया जाये, जल के गुणवत्ता का मापन एवं जीपीएस कैसे काम करता है का प्रात्यक्षिक एवं जानकारी दी गयी जिसे ग्रामीणों ने काफी सराहा। कार्यक्रम के दौरान पर्यावरण संस्थान द्वारा नौले के आस-पास सफाई कार्यक्रम चलाया गया। कार्यक्रम में संस्थान के वैज्ञानिक, भूमि एवं जल संसाधन प्रबंधन केन्द्र के कर्मचारी एवं ई0आई0ए0सी0पी0 केन्द्र के कमल किशोर टम्टा, विजय सिंह बिष्ट एवं संस्थान के शोधार्थी एवं ग्रामवासी उपस्थित रहे।