अल्मोड़ा – उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन उत्तराखंड जनपद अल्मोड़ा के अध्यक्ष डा मनोज कुमार जोशी व सचिव धीरेन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि राजकीय इंटर कालेज व राजकीय हाईस्कूल व अशासकीय विद्यालयों में में क्रमशः प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक के पदों पर पदोन्नति नहीं होना सरकार की विफलता है विभाग भी उत्तराखंड बनने के बाद ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए थी जिससे सभी विद्यालयों में संस्था प्रधान के पदों पर पदोन्नति हो सकें। आज शिक्षक संगठन भी इसको लेकर लामबंद है तो यह सही निर्णय है जो कार्य सरकार विभाग का होना चाहिए था इस कार्य के लिए संगठन आंदोलन रत है आखिर लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना में राज्य सरकार का योगदान क्या रहा। विद्यालयों में एक दो अध्यापकों के पद रिक्त हो चल सकता है लेकिन प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक के पद रिक्त हो तो कैसे संस्था चलेगी यह यक्ष प्रश्न है। आखिर सीनियर प्रवक्ता या अध्यापक को चार्ज कब तक ऐसा चलता रहेगा ऊपर से न तो प्रभार भत्ता न हो पूर्ण रूप से यात्रा भत्ता। संबंधित प्रभारी अपना विषय जो पढ़ायें या दिन रात विभागीय सूचना का प्रेषित करें पहले एक दो सूचना मांगी जाती है आज तो हर घंटे में अलग-अलग सूचना उसी समय भेजने को कहा जाता है आखिर दिमाग कहां कहां घुमाये। एक ही पद पर 25-30 वर्ष होने पर भी पदोन्नति नहीं आखिर यह हो क्या रहा है। थाना, अस्पताल, सभी कार्यालय में संस्था प्रधान होते हैं लेकिन जिस शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी नागरिक निर्माण की है मानवीय मूल्यों को बनाए रखने की जिम्मेदारी है वहां संस्था प्रमुख नियुक्त नहीं करना खतरनाक संकेत है। सरकार शासन में बैठे लोग भी बचपन में किसी स्कूल में से ही पढ़ें होगें तब तो सभी में संस्था प्रधान होते थे लेकिन आज क्यों नहीं। राजकीय शिक्षक संगठन की इस मांग का जनता, सभी संगठनों, पक्ष ,विपक्ष सभी ने समर्थन करना चाहिए यह समाज हित की बात है। एक बार शिथिलता प्रदान करते हुए प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक सभी पदों पर पद पूर्ति जरूरी है और उसके बाद ऐसी व्यवस्था बने कि पद रिक्त होने के दूसरे माह ही पद पूर्ति हो ।ऐसा नहीं है कि सिस्टम नहीं बन सकता बस चाहने की देरी है समाज के हितों की रक्षा करनी है तो संस्था प्रधान पद पर पदोन्नति करनी होगी बहाने तो नहीं करने के पचास मिल जायेंगे। उत्तराखंड में सभी माध्यमिक विद्यालयों शासकीय अशासकीय में पदोन्नति के माध्यम से प्रधानाचार्य प्रधानाध्यापक पदों की पूर्ति आवश्यक है इसमें विलंब नहीं करना चाहिए। उस दौर को भी नहीं भूलना चाहिए जब किसी प्रधानाचार्य के किसी अधिकारी से मिलने पर संबंधित अधिकारी चाहे जिलाधिकारी क्यों न हो कुर्सी से खड़े हो जाते थे और प्रधानाचार्य व गुरु जनों को सम्मान देते थे तथा किसी विद्यालय में पहुंच कर प्रधानाचार्य से मिलना बड़े गौरव की बात होती थी।आज विभाग व सरकार ने इस पद की मज़ाक बना दी है यह ठीक नहीं। महाभारत काल से चली आ रही चीरहरण की परम्परा बंद होनी चाहिए । पदोन्नति चाहे शिक्षकों की हो या कार्मिको की ससमय होनी चाहिए। सरकार व विभाग अपने अंतर्मन में झांकें और प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक पद पर एक बार शिथिलता प्रदान करते हुए शत् प्रतिशत पदोन्नति सुनिश्चित करें कोई भी शासकीय अशासकीय विद्यालयों प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक विहिन नहीं होना चाहिए। फेडरेशन के इक्कीस सूत्रीय मांगों पर भी शासनादेश जारी होना चाहिए। पुरानी पेंशन बहाली व‌ शिथिलीकरण जैसे मुद्दों को दबाना सरकार को शोभा नहीं देता। प्रदेश के नौनिहालों के भविष्य के दृष्टिगत कदम उठाए जाने की प्रबल आवश्यकता है कोई भी शासनादेश अंतिम नहीं होता नया शासनादेश जारी कर लोकहित के निर्णय लिए जाना ही सच्ची लोकतांत्रिक व्यवस्था होती है।