अभियुक्त जगदीश चन्द्र पुत्र प्रेम राम निवासी सिरखे, पो० गाढियाडोली, अल्मोड़ा जिला अल्मोड़ा ने फौजदारी वाद संख्या 1578 / 2022 अन्तर्गत धारा 354 (क), 354 ( T), 384,506 भारतीय दंड संहिता, 1860 व 67 आई0टी0 एक्ट द्वारा आत्मसमर्पण प्रार्थना पत्र कागज संख्या 11ख प्रस्तुत किया गया। अभियुक्त आज न्यायालय उपस्थित अभियुक्त की पहचान उनकी विद्वान अधिवक्ता शैफाली चारूश्री और अधिवक्ता रितेश कुमार द्वारा की गयी।

2. अभियुक्त द्वारा पृथक से जमानत प्रार्थना पत्र कागज संख्या 13ख / 1 लगायत 13ख/2 प्रस्तुत किया गया। जमानत प्रार्थना पत्र के कथन है कि प्रार्थी / अभियुक्त द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है, उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। पुलिस द्वारा रिपोर्टर की बनावटी, झूठी मनगढ़ंत शिकायत पत्र पर अभियुक्त को उपरोक्त धाराओं के अन्तर्गत आरोपित कर दिया है। जबकि उपरोक्त धाराओं के अन्तर्गत आरोप में अभियुक्त के विरूद्ध कोई अपराध नहीं बनता है। रिपोर्टर की झूठी रिपोर्ट पर प्रार्थी / अभियुक्त को फसाये जाने का स्पष्ट प्रमाण धारा-384 के अन्तर्गत अभियुक्त को आरोपित किया जाना है, क्योंकि रिपोर्टर की सुनी सुनाई बात पर अभियुक्त को उक्त धारा में आरोपित किया गया है, जबकि धारा 384 का आरोप अभियुक्त पर बनता नहीं है, इसी प्रकार अन्य धाराओं के अन्तर्गत भी प्रार्थी / अभियुक्त को साजिशन आरोपित किया गया है। वादी मुकदमा द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट में जिस अज्ञात मो० नं० का हवाला दिया है, उस मो0नं0 से प्रार्थी / अभियुक्त का कोई लेना-देना नहीं है मामला उपरोक्त में पुलिस द्वारा न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया है, जिस कारण अब मामले से जुड़े साक्ष्यों के साथ छेड़-छाड़ करने का कोई अंदेशा नहीं है। प्रार्थी / अभियुक्त को पुलिस द्वारा धारा-41ए जा०फौ० के नोटिस पर रिहा किया गया है और प्रार्थी द्वारा अन्वेषण में पुलिस का सम्पूर्ण सहयोग किया गया इस कारण पुलिस को भी कभी भी अभियुक्त को गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दिनांक 06.03.2023 को अभियुक्त इस कारण उपस्थित नहीं हो सका था, क्योंकि अभियुक्त इस दुविधा में था तथा उसके अधिवक्ताओं ने उसे कार्यविरत होने की सूचना प्रदान की थी इस प्रकार उसने जान-बूझकर मामले में उपस्थित होने में चूक नहीं की। अभियुक्त न्यायालय को विश्वास दिलाता है कि वह ताफैसला मुकदमा मामले के विचारण पूर्ण सहयोग करेगा। अतः न्यायालय से प्रार्थना है कि अभियुक्त को ताफैसला मुकदमा जमानतियों की जमानत पर रिहा करने की कृपा कर दी जाय।
3. जमानत प्रार्थना पत्र पर अभियोजन से आख्या तलब की गई। सहायक अभियोजन अधिकारी द्वारा जमानत प्रार्थना पत्र के पृष्ठ पर अंकित कर यह कथन किया गया है कि उपरोक्त मामला महिला थाना अल्मोड़ा में अन्तर्गत धारा 354 (क), 354 (घ), 384,506 भारतीय दंड संहिता, 1860 व 67 आई0टी0 एक्ट के तहत मु0अ0सं0-02 / 2022 बनाम जगदीश चन्द्र पंजीकृत है। उपरोक्त धाराओं में से धारा 354 (क), 354 (घ) व 67 आई0टी0 एक्ट जमानतीय हैं व 384 अजमानतीय हैं। जमानत का विरोध किया जाता है।
4.
सुना एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
5. अभियुक्त की ओर से उनकी विद्वान अधिवक्ता शैफाली चारूश्री और अधिवक्ता रितेश कुमार द्वारा कथन किया गया कि अभियुक्त के विरूद्ध झूठी तहरीर दी गई है। अभियुक्त के विरूद्ध दी गई तहरीर के तथ्यों से उनके विरूद्ध धारा 384 भा०द०स० का आरोप बनना दर्शित नहीं होता है। अभियुक्त को जमानत पर रिहा किये जाने की प्रार्थना की गई।
6.
पत्रावली का अवलोकन कर पाया गया कि यह मुकदमा अभियुक्त जगदीश चन्द्र
पुत्र प्रेम राम के विरूद्ध दर्ज हुआ था। विवेचना पूर्ण होने के बाद अभियुक्त के विरूद्ध आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया जा चुका है तथा अभियुक्त दौराने विवेचना धारा-41क दं०प्र०सं० के नोटिस पर रहा है। इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित न्यायनिर्णय Aman Preet Singh v. C. B.I., 2021 SCC OnLine SC 941 में यह अवधारित किया गया है कि “Insofar as the present case is concerned and the general principles under Section 170 Cr.P.C., the most apposite observations are in sub-para (v) of the High Court judgment in the context of an accused in a non-bailable offence whose custody was not required during the period of investigation. In such a scenario, it is appropriate that the accused is released on bail as the circumstances of his having not been arrested during investigation or not being produced in custody is itself sufficient to entitle him to be released on bail. The rationale has been succinctly set out that if a person has been enlarged and free for many years and has not even been arrested during investigation, to suddenly direct his arrest and to be incarcerated merely because charge sheet has been filed would be contrary to the governing principles for grant of bail. We could not agree more with this.” इसके अतिरिक्त माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा पारित निर्णय Siddharth Vs State of UP and another 2021 SCC online SC615 & Satender Kumar Antil VS CBI and Another 2021 SCC online SC922 का ससम्मान अवलोकन किया गया।
7. उक्त विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में दौराने विवेचना अभियुक्त को धारा – 41क दं०प्र०सं० का नोटिस दिया गया था तथा गिरफ्तार नहीं किया गया था। इसके अतिरिक्त अभियोजन पक्ष अथवा विवेचक की ओर से ऐसा कोई भी कथन नहीं किया गया है कि अभियुक्त द्वारा दौराने विवेचना धारा-41क दं०प्र०सं० की शर्तों का उल्लघंन किया हो। इसके अतिरिक्त विवेचक द्वारा अभियुक्त के विरूद्ध आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है। अतः प्रकरण के साक्ष्य व गवाहों से छेड़छाड़ करने की संभावना नहीं है। इस संबंध में पत्रावली के अवलोकन से यह भी विदित है कि प्रार्थी / अभियुक्त पर लगाये गये सभी आरोप मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय हैं। अतः माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित उक्त निर्णय में प्रतिपादित विधिक सिद्धांतों के आलोक में प्रार्थी / अभियुक्त को जमानत पर छोड़ देने का पर्याप्त आधार है। तदनुसार मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी न करते हुए अभियुक्त का जमानत प्रार्थना पत्र स्वीकार किये जाने योग्य है।

आदेश

अभियुक्त जगदीश चन्द्र पुत्र प्रेम राम का जमानत प्रार्थना पत्र फौजदारी वाद संख्या 1578 / 2022 में स्वीकार किया जाता है। प्रार्थी / अभियुक्त को मु0 25,000 / – पच्चीस हजार रूपये के व्यक्तिगत बंधपत्र व इतनी ही धनराशि के दो सक्षम जमानती दाखिल करने पर रिहा किया जाये ।