आपको बताते चलें कि 20अगस्त 2022 को जिलाधिकारी अल्मोड़ा वंदना ने एक आदेश पारित किया था की, टैग लगी गायों को अगर आवारा स्थिति में पाया जाएगा तो सम्बन्धित गौपालक के विरूद्ध सख्त कार्यवाही की जाएगी। लेकिन शायद पालिका या अन्य विभागों ने इस आदेश को न तो देखा और न समझा, आज भी बाजार में कई गायों को जो टैग लगे घूमते देखा गया है। टैग का मतलब भी आपको बताते चले कि जब कोई पशु पालक किसी भी योजना के तहत लोन लेता है, जिस पशु के ऊपर लोन हो तो उस पशु के कान में एक टैग लगा दिया जाता है। जिससे पता लग सके की इस पशु के लिए लोन लिया गया है। और फिर उस पशु को पशुपालक अपने घर में ही रखता है और उसकी देखभाल करता है। लेकिन इस तरह गायों को आवारा पशुओं की तरह बाजार में देखने पर ही जिलाधिकारी ने आदेश दिया था की टैग लगी गायों को आवारा घूमते देखे जाने पर उसके मालिकों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही होगी। परंतु लगता है की जिलाधिकारी का आदेश केवल पेपरों में ही दर्ज होकर रह गया है। जिसका अब कोई असर धरातल में नजर नहीं आ रहा है। ये आवारा जानवरों की श्रेणी में अब टैग लगे पशु भी नजर आ रहे है। लगता है ये पशु भी केवल लोन के लिए ही है इनसे लोन मिल जाए बाकी मालिकों को कोई इससे मतलब नहीं है। एक लोन खत्म तो दूसरे की तैयारी हो जाती है। यही नहीं अब तो लोन देने वाले भी शक के घेरे में नजर आ जाते है की क्या केवल लोन देने तक ही उनका काम है। सरकारी धन का खुला दुरुपयोग करने वाले आज भी चौड़े हो कर इस तरह सरकारी धन का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आते ।
इस तरह के लोगों को लोन बाँटने से जो जरूरत मंद व्यक्ति होता है वो अछूता रह जाता है।
क्या ये सब जानने के बाद, प्रशासन कोई कदम उठाएगा या आज फिर होगी कागजों में लीपापोती?