अल्मोड़ा/हल्द्वानी। पहाड़ों की रानी कहे जाने वाले कुमाऊं क्षेत्र में गर्मियों की दस्तक के साथ ही पर्यटक सीजन की भी जोरदार शुरुआत हो चुकी है। हल्द्वानी, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, जागेश्वर, मुक्तेश्वर, कौसानी जैसे पर्यटक स्थलों पर देश-विदेश से सैलानियों की भीड़ उमड़ रही है। लेकिन इस उत्साह के बीच सड़कों पर बदहाल व्यवस्था, लंबा ट्रैफिक जाम और सबसे अहम – महिला पर्यटकों के लिए शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव, इस हसीन यात्रा अनुभव को पीड़ा में बदल रहा है।
हल्द्वानी से जागेश्वर तक जाम ही जाम
कुमाऊं क्षेत्र में इन दिनों हालात ऐसे हैं कि हल्द्वानी से लेकर जागेश्वर धाम तक सड़कों पर यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है। हर सप्ताहांत और अवकाश के दिनों में हजारों की संख्या में पर्यटक वाहनों के जरिए पहाड़ों की ओर रुख कर रहे हैं। लेकिन नतीजा यह हो रहा है कि कई मार्गों पर घंटों तक यात्री जाम में फंसे रहते हैं। गरमपानी, खैरना, सूपी, अल्मोड़ा बाईपास, धारानौला से लेकर जागेश्वर मार्ग तक स्थिति बेहद खराब बनी हुई है।
जाम के इस संकट में सबसे ज़्यादा परेशान होती हैं महिला पर्यटक, जिन्हें न केवल घंटों वाहन में बैठना पड़ता है, बल्कि रास्ते में कहीं भी शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं होती। ऐसे में उनका यात्रा अनुभव असहज और असुरक्षित हो जाता है।
बुनियादी सुविधाओं की कमी: शर्मनाक तस्वीर
पर्यटन स्थलों पर विकास की बातें तो खूब होती हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि कुमाऊं मंडल के प्रमुख मार्गों पर शौचालय, पेयजल, साफ-सफाई या विश्रामस्थल जैसी कोई सुविधा नहीं है। जो गिने-चुने शौचालय कहीं-कहीं दिखाई देते हैं, वे या तो जर्जर हैं, या गंदगी से अटे पड़े हैं। महिलाओं के लिए सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय न होना न केवल एक बुनियादी अधिकार का हनन है, बल्कि कुमाऊं की पर्यटन छवि को भी खराब कर रहा है।
जाम में फंसी एक पर्यटक महिला ने कहा, “दिल्ली से हम जागेश्वर दर्शन के लिए आए थे, लेकिन रास्ते में तीन घंटे से गाड़ी में बैठे हैं और कहीं भी वॉशरूम नहीं दिखा। परिवार के साथ सफर करना मुश्किल हो गया है।”
गढ़वाल बनाम कुमाऊं — सुविधाओं में साफ अंतर
अगर हम उत्तराखंड के दूसरे मंडल, गढ़वाल की बात करें, तो वहां की व्यवस्थाएं कहीं अधिक सुदृढ़ नजर आती हैं। चाहे वह चारधाम यात्रा हो या मसूरी, टिहरी, चोपता जैसे पर्यटन स्थल — वहां हर कुछ किलोमीटर पर शौचालय, पीने का पानी, मेडिकल सहायता और विश्राम स्थल देखने को मिलते हैं। महिला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए शौचालयों की संख्या बढ़ाई गई है और उनकी नियमित सफाई की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है।
इसके विपरीत कुमाऊं में पर्यटन सुविधाओं की प्लानिंग के अभाव के चलते पर्यटक खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। जागेश्वर धाम जैसे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल, जहां रोज़ाना हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं, वहां तक पहुंचने में कोई सुविधा नहीं मिलती। वहीं कौसानी, रानीखेत और मुक्तेश्वर जैसे पर्यटक स्थल भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं।

स्थानीय लोग और कारोबारी भी हो रहे परेशान
सड़क जाम और अव्यवस्थाओं से केवल पर्यटक ही नहीं, बल्कि स्थानीय नागरिक और कारोबारी वर्ग भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। जाम के चलते स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्र, कार्यालय जाने वाले लोग और स्थानीय दुकानदार सभी परेशान हैं। वहीं पर्यटकों को हो रही परेशानी के चलते होटलों और रेस्टोरेंट्स में बुकिंग कैंसिल हो रही हैं, जिससे आर्थिक नुकसान हो रहा है।
एक स्थानीय दुकानदार ने कहा, “अगर पर्यटक आएंगे ही नहीं या आएंगे और नाराज़ होकर लौट जाएंगे तो हम किससे कमाई करेंगे? प्रशासन को इस पर तुरंत ध्यान देना चाहिए।”
प्रशासन की चुप्पी और योजनाओं का अभाव
हर साल पर्यटन सीजन आता है और हर बार प्रशासन को जाम, शौचालय और अव्यवस्थाओं की याद उसी समय आती है। न तो पहले से कोई ठोस तैयारी होती है और न ही भीड़ के हिसाब से अतिरिक्त सुविधा का इंतजाम किया जाता है। अस्थायी मोबाइल टॉयलेट, ट्रैफिक रूट डायवर्जन, पार्किंग जोन और हेल्पलाइन जैसी व्यवस्थाएं नदारद हैं।
मांग — जल्द से जल्द हो ठोस कार्यवाही
अब समय आ गया है कि कुमाऊं मंडल को गढ़वाल की तर्ज पर पर्यटन के लिए तैयार किया जाए। स्थानीय सामाजिक संगठनों, जनप्रतिनिधियों और व्यापारियों की यह मांग है कि:
सभी प्रमुख मार्गों पर महिलाओं के लिए स्वच्छ और सुरक्षित शौचालयों की स्थापना की जाए।
ट्रैफिक प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित बल और वैकल्पिक मार्ग चिन्हित किए जाएं।
अस्थायी पार्किंग और शटल सेवा शुरू की जाए।
महिला यात्रियों के लिए विश्रामस्थल, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और सहायता बूथ बनाए जाएं।
पर्यटन स्थलों पर नियमित निगरानी और सफाई व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
यदि इन मांगों पर जल्द अमल नहीं किया गया तो कुमाऊं की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व होते हुए भी उसकी छवि धूमिल हो सकती है। पर्यटकों की पहली प्राथमिकता सुरक्षा और सुविधा होती है — और यदि यह नहीं मिली, तो वे दोबारा लौटना नहीं चाहेंगे।
कुमाऊं को पर्यटन के नक्शे पर टिकाए रखना है तो शब्दों से ज़्यादा ज़रूरत है व्यवस्थाओं की।
