विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत वैज्ञानिकों ने 463 किसानों से किया सीधा संवाद
अल्मोड़ा।
विकसित कृषि संकल्प अभियान के अंतर्गत भाकृअनुप–विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के फसल सुधार विभागाध्यक्ष डॉ. निर्मल कुमार हेडाउ के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने विकासखण्ड भिकियासैंण के ग्राम बाड़ीकोट में कृषक आनंद सिंह से मुलाकात कर उनके कृषि नवाचारों का अवलोकन किया। कृषक सिंह ने बताया कि उन्होंने पारंपरिक खेती के बजाय चंदन की खेती कर एक नई दिशा में कदम बढ़ाया है। वर्तमान में वे 8 से 10 नाली भूमि में चंदन की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें प्रतिवर्ष 7 से 8 लाख रुपये की आमदनी हो रही है।
सिंह ने बताया कि चंदन एक परजीवी पौधा है, जिसे जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते, जिससे यह पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों के लिए एक उपयुक्त और लाभकारी विकल्प बन सकता है।
अभियान के सातवें दिन संस्थान की वैज्ञानिक टीम ने अल्मोड़ा और चमोली जिलों के 4 विकासखण्डों के 19 गांवों में पहुंचकर कुल 463 किसानों से सीधा संवाद किया। इस दौरान वैज्ञानिकों ने खरीफ फसलों जैसे मडुवा, मादिरा, दलहन एवं सब्जी फसलों की उन्नत किस्मों की जानकारी देने के साथ-साथ उनकी वैज्ञानिक खेती की विधियों एवं फसल सुरक्षा तकनीकों पर चर्चा की।
डॉ. के. के. मिश्रा ने किसानों को एकीकृत रोग प्रबंधन, पर्यावरण अनुकूल उपाय तथा जैविक खेती के महत्व को समझाया और रोगों की पहचान कर हानिकारक कीटनाशकों के कम उपयोग की सलाह दी। साथ ही उन्होंने मधुमक्खी पालन और मशरूम उत्पादन को पर्वतीय क्षेत्रों में आयवर्धन का सशक्त साधन बताया।
इस दौरान किसानों को पर्वतीय कृषि यंत्रों की जानकारी दी गई, जिससे समय और श्रम की बचत संभव हो सके। नर्सरी प्रबंधन, मौसमी फसल योजना, पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन, फसल चक्र, और जैव उर्वरकों के प्रयोग से मृदा स्वास्थ्य एवं दीर्घकालिक उत्पादकता बनाए रखने की भी सलाह दी गई।
चमोली जिले के परसारी और मेरग गांवों में विशेषज्ञों द्वारा 136 जनजातीय किसानों से संवाद किया गया। इस अवसर पर उन्हें मटर, धनिया, मूली और पत्तागोभी के बीज वितरित किए गए, साथ ही ‘किल्टा’ टोकरी एवं फल-सब्जी की क्रेट्स भी उपलब्ध कराए गए, जिससे फसल की कटाई के बाद विपणन कार्य में सहूलियत मिल सके।
इसके अतिरिक्त किसानों को वैज्ञानिक साहित्य, जैविक खेती को बढ़ावा देने की जानकारी, बाजार से जुड़ाव की प्रक्रिया तथा कीट प्रबंधन पर तकनीकी सलाह भी दी गई।
यह अभियान निदेशक डॉ. लक्ष्मीकांत के नेतृत्व में चलाया जा रहा है। नोडल अधिकारी डॉ. कुशाग्र जोशी ने बताया कि यह पहल वैज्ञानिकों और किसानों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम बन रही है, जिससे क्षेत्रीय कृषि में नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा।
चंदन की खेती बना आय का नया स्रोत, वैज्ञानिकों ने किसानों को दिए नवाचार के टिप्स

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