धौलछीना, अल्मोड़ा – उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा घोषित हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा परिणामों में अल्मोड़ा जिले के दो होनहार छात्रों ने पूरे प्रदेश में जिले का नाम रोशन किया है। विपरीत परिस्थितियों में कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प के साथ पढ़ाई करने वाले इन विद्यार्थियों की सफलता समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है।
वैष्णवी जडौत – मां की सिलाई मशीन से बुना सपनों का ताना-बाना
विवेकानंद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, बाड़ेछीना की छात्रा वैष्णवी जडौत ने 486 अंक अर्जित कर प्रदेश की मेरिट सूची में दसवां स्थान प्राप्त किया है। बाड़ेछीना के सुपई गांव की रहने वाली वैष्णवी के सिर से छह साल पहले पिता का साया उठ गया था। इसके बाद उनकी मां ललिता जडौत ने सिलाई का काम कर न केवल दोनों बेटियों का पालन-पोषण किया, बल्कि उन्हें बेहतर शिक्षा भी दिलाई।
वैष्णवी आगे चलकर चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहती हैं ताकि अपनी मां और बहन को एक बेहतर जीवन दे सकें। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरुजनों और अपनी सबसे करीबी मित्र को दिया, जो हर कठिन घड़ी में उनके साथ खड़ी रही। वैष्णवी का कहना है, “जब भी समय मिलता है, मैं पढ़ाई में लग जाती हूं। यही मेरी दिनचर्या है और यही मेरा लक्ष्य।”
प्रियांशु मेहरा – पहाड़ों से चलकर सपनों की ओर
श्री श्री मां आनंदमई राजकीय इंटर कॉलेज, धौलछीना के छात्र प्रियांशु मेहरा ने भी 477 अंक प्राप्त कर प्रदेश में 19वीं रैंक हासिल की। भनलगांव जैसे दूरस्थ गांव से आने वाले प्रियांशु के पिता शेर सिंह दिल्ली में वेटर की नौकरी करते हैं, जबकि मां गृहिणी हैं।
विद्यालय की दूरी अधिक होने के कारण प्रियांशु ने ननिहाल में रहकर पढ़ाई की, लेकिन वहां से भी उन्हें प्रतिदिन 4 किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय जाना पड़ता था। कठिनाइयों के बावजूद प्रियांशु ने हार नहीं मानी और गणित जैसे कठिन विषय में 99% अंक प्राप्त किए। वह आगे चलकर शिक्षक बनना चाहते हैं।
प्रियांशु ने अपनी सफलता का श्रेय विद्यालय के शिक्षकों को दिया और बताया कि उनकी पढ़ाई की नींव कक्षा 8 तक श्री श्री मां आनंदमई पब्लिक स्कूल में पड़ी थी।
समाज को नई दिशा
इन दोनों प्रतिभाशाली छात्रों की कहानियाँ यह सिद्ध करती हैं कि आर्थिक और सामाजिक चुनौतियाँ यदि संकल्प के सामने झुक जाएँ, तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं रहता। वैष्णवी और प्रियांशु जैसे छात्र-छात्राएं न केवल अपने परिवार के लिए प्रेरणा हैं, बल्कि उन सभी के लिए भी उदाहरण हैं जो सीमित संसाधनों में अपने सपनों को साकार करने की आकांक्षा रखते हैं।