हर घर जल, हर घर नल – पर नहीं आया पानी
हर घर जल, हर घर नल,
सुनते-सुनते बीत गए पल।
कागजों में बहती नदियाँ,
हकीकत में सूखा हर पल।
बस्ती-बस्ती प्यास सजी है,
सूखे होंठों की बेबसी है।
बोतल वाला जल है आता,
पर नल से बस हवा बही है।
वादा किया था सरकार ने,
हर घर तक जल पहुँचाएँगे।
पर नल टपकता आँसू जैसे,
कब तक हम समझाएँगे?
सूखी धरती, प्यासी आँखें,
कहाँ गया वो मीठा पानी?
सपनों में बस चित्र बनाकर,
कब तक होगी मनमानी?
हर घर जल, हर घर नल,
सच बने, यह अब है हल।
सिर्फ़ वादे से क्या होगा?
पानी दो, तब होगी हलचल!
कपिल मल्होत्रा