बाल उत्सव-2025 के तहत कात्यायनी सभागार, दिल्ली में आयोजित हुआ ऐतिहासिक नाटक
दिल्ली |
गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी—दिल्ली सरकार के सौजन्य से आयोजित ‘बाल उत्सव-2025’ के अंतर्गत एक भावपूर्ण एवं ऐतिहासिक नाटक ‘झन दिया कुली बेगारा’ का मंचन दिल्ली के कात्यायनी सभागार, मयूर विहार में किया गया। यह नाटक उत्तराखंड में ब्रिटिश शासनकाल की शोषणकारी कुली बेगार प्रथा और उसके विरुद्ध हुए ऐतिहासिक जनांदोलन पर आधारित था, जिसे महात्मा गांधी ने ‘रक्तहीन क्रांति’ की संज्ञा दी थी।
नाटक की परिकल्पना, लेखन और निर्देशन मीना पांडेय द्वारा किया गया, जबकि सह-निर्देशन गीतिका मेहता ने किया। कार्यक्रम में दर्शकों की भारी उपस्थिति रही और सभागार पूरे समय तालियों की गूंज से गूंजता रहा।
कुली बेगार: एक इतिहास, जो आज भी जीवित है
नाटक की कहानी 1921 के उत्तरायणी मेले, बागेश्वर की ऐतिहासिक घटना पर आधारित थी, जब स्वतंत्रता सेनानी बद्री दत्त पांडेय के नेतृत्व में हजारों लोगों ने सरयू नदी में कुली रजिस्टर बहा कर इस अमानवीय प्रथा के अंत को जन आंदोलन के रूप में दर्ज किया। जनता ने सामूहिक रूप से कुली बेगार देने से इनकार कर दिया, और इस आंदोलन ने पूरे उत्तराखंड में स्वतंत्रता की अलख जगा दी।
नाटक में अद्भुत अभिनय और सशक्त संदेश
नाटक में बच्चों ने न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि ऐतिहासिक पात्रों में पूरी तरह से डूब गए।
नेहा ने लक्ष्मी,
भव्य चंद्र ने बद्री दत्त पांडेय,
शनाया चौधरी ने हरगोविंद पंत,
दक्ष रावत ने महात्मा गांधी,
सृजन पांडेय ने पटवारी,
सार्थक नेगी ने अर्दली,
आलिया ने कार्यकर्ता,
तथा जाह्नवी ने डाईविल की भूमिका निभाई।
इन सभी कलाकारों के प्रदर्शन को दर्शकों ने खूब सराहा और उनके सजीव अभिनय ने पूरे सभागार को भावविभोर कर दिया।
तकनीकी पक्षों की सटीक प्रस्तुति
संगीत संयोजन जीवन चंद्र कलखुंडिया द्वारा किया गया, जिसने नाटक के भावों को और अधिक सशक्त बना दिया।
रूप सज्जा सुप्रसिद्ध मेकअप आर्टिस्ट हरी खोलिया द्वारा की गई, जिनकी सृजनात्मकता ने पात्रों को जीवंत कर दिया।
मंच संचालन में सुचिता साहु का विशेष योगदान रहा, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।
मीना पांडेय का उद्देश्य
नाटक की निर्देशक मीना पांडेय, जो वर्तमान में साहिबाबाद, गाजियाबाद में निवास करती हैं, पिछले 8–10 वर्षों से रंगमंच से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा,
> “इस नाटक के माध्यम से हमारा उद्देश्य बच्चों को उत्तराखंड के उन स्वतंत्रता सेनानियों से जोड़ना था, जिनके योगदान को आज की पीढ़ी धीरे-धीरे भूलती जा रही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि कुली बेगार आंदोलन यह दर्शाता है कि संगठित होकर भी अहिंसक मार्ग से अत्याचार का विरोध किया जा सकता है।
सहयोगी भूमिकाओं में भी बच्चों की भागीदारी
नाटक में सहयोगी भूमिकाओं में भी बच्चों ने अपनी कला का शानदार प्रदर्शन किया। शनाया रावत, रितिक, एकता, साक्षी, मानवी, निशा, निर्मला, शगुन, लक्ष्मी, विवान, युवान, सरस्वती, पूर्णिमा, समृद्धि पांडेय, आदिरा, अंशिका, राशि और शिवानी जैसे प्रतिभाशाली बच्चों ने मंच पर जीवंतता ला दी।
अतिथि और दर्शकों की उपस्थिति ने बढ़ाया उत्साह
कार्यक्रम में गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी के राजू तिवारी, मनराल, के एन पांडेय, पर्वतीय कला केंद्र के संयुक्त सचिव के एस बिष्ट और राकेश शर्मा सहित बड़ी संख्या में गणमान्य अतिथिगण, बुद्धिजीवी, शिक्षक और अभिभावक उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के दौरान सभागार खचाखच भरा रहा और दर्शकों ने लगातार तालियों से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया। उपस्थित लोगों ने इस आयोजन को “सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने वाला सशक्त प्रयास” करार दिया।
—
‘झन दिया कुली बेगारा’ जैसे नाटक न केवल सांस्कृतिक चेतना को जागृत करते हैं, बल्कि नई पीढ़ी को अपने इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम और समाज के संघर्षों से भी जोड़ते हैं। इस प्रकार के मंचन उत्तराखंड की सांस्कृतिक अस्मिता को नई पहचान देते हैं और यह संदेश देते हैं कि “बिना रक्तपात के भी क्रांति संभव है।”
‘झन दिया कुली बेगारा’ नाटक का प्रभावशाली मंचन, बच्चों ने जिया उत्तराखंड का स्वाधीनता संग्राम

Leave a comment
Leave a comment