अल्मोड़ा। उत्तराखंड के हृदय स्थल अल्मोड़ा में स्थित भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (VPKAS) ने पर्वतीय कृषि शोध और विकास के क्षेत्र में 100 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पूर्ण कर ली है। कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग, भारत सरकार के अधीन यह संस्थान उत्तर-पश्चिमी हिमालयी राज्यों के साथ-साथ देश के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में भी कृषि नवाचारों के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
1924 में पद्म भूषण प्रोफेसर बोशी सेन द्वारा एकल प्रयोगशाला के रूप में स्थापित यह संस्थान 1974 में भाकृअनुप के अधीन आया। तब से यह जैव विविधता संरक्षण, पर्वतीय कृषि विकास और किसानों की आय वृद्धि हेतु सतत प्रयासरत है। संस्थान ने अब तक 201 उच्च गुणवत्ता वाली फसल किस्मों का विकास किया है जिनमें मक्का, गेहूं, प्याज, मंडुवा, मादिरा आदि प्रमुख हैं।
संस्थान की उल्लेखनीय उपलब्धियों में देश की पहली संकर मक्का किस्म (VL मक्का 54), प्रोटीन युक्त मक्का (विवेक QPM-9), एवं पर्वतीय महिलाओं के लिए विवेक थ्रेशर-पर्लर जैसी मशीनों का विकास शामिल है। संस्थान के तीन अनुसंधान पेटेंट – बीटी बैक्टीरिया, बीटल ट्रैप एवं वाष्पशील संग्रह उपकरण – इसकी नवाचार क्षमता को दर्शाते हैं।
विगत वर्ष संस्थान द्वारा मक्का, धान, मंडुवा आदि की 9 नई किस्मों को अधिसूचित किया गया और 40,665 किग्रा बीजों का उत्पादन किया गया, जिनमें से अधिकांश 24 राज्यों को आपूर्ति किए गए। किसानों को व्हाट्सएप समूह, हेल्पलाइन, SMS एवं यूट्यूब चैनलों के माध्यम से तकनीकी सलाह दी गई जिससे 765 कृषक सीधे लाभान्वित हुए।
संस्थान द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति उपयोजनाओं के अंतर्गत बागेश्वर जिले के उडेर खानी गांव में “उडेर खानी मॉडल” के माध्यम से कृषकों को मधुमक्खी पालन, मशरूम व सब्जी उत्पादन की तकनीकें सिखाई गईं, जिससे प्रति किसान लगभग ₹60,000 वार्षिक आय प्राप्त हुई।
संस्थान का लक्ष्य है—कम लागत वाली, जलवायु अनुकूल और जैविक खेती आधारित तकनीकों को किसानों तक पहुंचाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना। महिला सहभागिता, बीज वितरण प्रणाली का सशक्तीकरण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण इसकी प्राथमिकताएं हैं।
भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान: पर्वतीय कृषि में एक सदी का स्वर्णिम योगदान

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