जयपुर के प्रसिद्ध जवाहर कला केंद्र में 28 से 30 जनवरी तक तीन दिवसीय ‘बसंत बहार’ नृत्य उत्सव का आयोजन हुआ, जो कि बासंती रंगों से सरोबार एक अद्भुत सांस्कृतिक अनुभव था। इस उत्सव में भारतनाट्यम और कथक नृत्य शैली की प्रस्तुति हुई, जो कला प्रेमियों के लिए एक अनमोल अवसर था। इस कार्यक्रम का आयोजन विशेष रूप से उल्लेखनीय था क्योंकि यह नृत्य उत्सव न केवल परंपरा और आधुनिकता का संगम था, बल्कि इसमें अल्मोड़ा के दो होनहार नर्तकों, नीरज सिंह बिष्ट और हर्ष, ने भी अपने नृत्य कौशल से इस आयोजन को और भी विशेष बना दिया।
इस नृत्य उत्सव की कोरियोग्राफी का दायित्व संतनु चक्रबर्ती गुरु और पूनम नेगी गुरु पर था, जिन्होंने अपनी कला और अनुभव से इस आयोजन को एक नया आयाम दिया। उनके मार्गदर्शन में कथक और भारतनाट्यम नृत्य के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत किया गया, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने में सफल रहे। इस उत्सव का विषय बसंत था, जो नए जीवन और ऊर्जा का प्रतीक है, और इस मौसम का उल्लास नृत्य के माध्यम से बखूबी व्यक्त किया गया।
नीरज सिंह बिष्ट और हर्ष, जो अल्मोड़ा से आए थे, ने इस अवसर पर कथक और भारतनाट्यम की प्रस्तुति दी। नीरज सिंह बिष्ट ने कथक नृत्य शैली में अपनी कला का प्रदर्शन किया, जो न केवल शास्त्रीय तकनीकों से परिपूर्ण था, बल्कि उसमें कथक के सजीव और गतिशील तत्व भी थे। उनकी नृत्य शैली में पाँव की थाप और हाथों के विभिन्न मुद्राओं के माध्यम से एक अद्वितीय संदेश दिया गया, जो दर्शकों के दिलों को छू गया। उनके नृत्य में विशेष रूप से भावनाओं का सुंदर समन्वय था, जो कथक के गहरे और सांगीतिक आयामों को स्पष्ट रूप से प्रकट करता था।
वहीं, हर्ष ने भारतनाट्यम नृत्य में अपनी प्रस्तुति दी, जो पूरी तरह से भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने वाला था। भारतनाट्यम की प्राचीन शैली में नृत्य करते हुए उन्होंने नृत्य की प्रत्येक मुद्रा और ताल से दर्शकों को अपनी कला के माध्यम से मंत्रमुग्ध कर दिया। हर्ष का प्रदर्शन न केवल शारीरिक क्षमता का परिचायक था, बल्कि उन्होंने नृत्य के प्रत्येक आयाम में भावनाओं को भी निखारा, जो दर्शकों को एक आध्यात्मिक अनुभव की ओर ले जाता था।
इस नृत्य उत्सव में भाग लेने के बाद नीरज और हर्ष ने बताया कि यह अवसर उनके लिए एक बड़ा अनुभव था। उन्हें अपने गुरु संतनु चक्रबर्ती और पूनम नेगी से बहुत कुछ सीखने को मिला, और इस मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करना उनके जीवन का एक अनमोल पल था। अल्मोड़ा जैसे छोटे शहर से आने के बावजूद, उन्होंने अपनी कला के माध्यम से यह साबित कर दिया कि छोटे स्थानों से भी बड़े कलाकार उभर सकते हैं।
बसंत बहार नृत्य उत्सव ने यह भी दर्शाया कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य की विविधता और गहराई को न केवल संरक्षित किया जा सकता है, बल्कि उसे एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत भी किया जा सकता है। इस कार्यक्रम का आयोजन नृत्य कला के प्रति एक नई समझ और सराहना को बढ़ावा देता है, जिससे न केवल कला प्रेमी, बल्कि आम दर्शक भी शास्त्रीय नृत्य के प्रति जागरूक होते हैं।
अंत में, यह नृत्य उत्सव न केवल जयपुर के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, बल्कि इसने अल्मोड़ा के कलाकारों को एक राष्ट्रीय मंच पर अपने कला कौशल को प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया। नीरज और हर्ष के योगदान ने इस आयोजन को और भी खास बना दिया, और यह प्रमाणित किया कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य की सुंदरता और प्रभाव किसी भी मंच पर शानदार तरीके से प्रस्तुत की जा सकती है।
बसंत बहार नृत्य उत्सव में अल्मोड़ा के नीरज सिंह बिष्ट और हर्ष का योगदान
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