उत्तराखंड में कार्यरत हिमोत्थान सोसाइटी द्वारा प्रायोजित “पर्वतीय कृषि हेतु उन्नत उत्पादन तकनीकी” विषय पर एक तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रयोगात्मक प्रक्षेत्र हवालबाग में आयोजित  किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों से हिमोत्थान सोसाइटी में कार्यरत पदाधिकारी तथा संस्था से जुड़े 4 प्रगतिशील कृषकों सहित कुल 28 लोगों ने  प्रतिभागिता की। प्रशिक्षण कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञों  द्वारा किसानों को पर्वतीय क्षेत्रों में उत्पादित होने वाली प्रमुख फसलों की उत्पादन तकनीकी तथा उनके रोग एवं कीट प्रबन्घन की जानकारी दी गयी तथा किसानों को इन फसलों की खेती में आने वाली परेशानियों का निराकरण किया गया।

      प्रशिक्षण कार्यक्रम में आजीविका की अन्य विधाओं जैसे बेमौसमी सब्जी उत्पादन, विभिन्न सब्जी फसलों का बीजोत्पादन, मौन पालन, संरक्षित सब्जी उत्पादन, आदि के विषय भी शामिल किए गए। औषधीय एवं सगंध फसल उत्पादन एवं जैविक खेती पर क्रमशः पंतनगर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महेंद्र सिंह नेगी तथा  भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक दिबाकर महंता ने भी ऑनलाइन जानकारी दी। विभिन्न तकनीकों के व्यवहारिक प्रदर्शन हेतु प्रक्षेत्र का भ्रमण कराया गया। इसके अलावा कृषकों को कृषि कार्यो में प्रयुक्त होने वाले छोटे कृषि यंत्रों तथा विभिन्न फसलों की मढ़ाई और गहाई हेतु संस्थान द्वारा विकसित यंत्रों के बारे में भी जानकारी प्रदान की गयी।

            कार्यक्रम का समापन करते हुए भाकृअनुप-विेवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के  निदेशक डॉ0 लक्ष्मी कान्त ने सभी प्रशिक्षणार्थियों का अभिनन्दन करते हुए उन्हें संस्थान का पर्वतीय कृषि के योगदान के बारे में बताया। उन्होने कहा की संस्थान विभिन्न पर्वतीय फसलों के बीजों का प्रजनक बीज उपलब्ध कराकर देश के बीज उत्पादन प्रणाली में अपना योगदान प्रस्तुत कर रहा है। उन्होने सबका आह्वान किया कि वे संस्थान की नई तकनीकों को सीख उनका  लाभ उठाने के साथ-साथ उसे अन्य किसानों को भी सिखायें। सभी किसान जब मिल कर आगे बढ़ेगे तभी क्षेत्र का विकास होगा।  

     प्रशिक्षणार्थियों द्वारा सम्पूर्ण कार्यक्रम को शिक्षाप्रद व सूचनात्मक बताया गया तथा कृषकों ने भविष्य में संस्थान में आकर विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में सहभागिता की इच्छा व्यक्त की। कार्यक्रम का समन्वयन डॉ0 बृज मोहन पाण्डेय, जीवन बी और हितेश बिजारणिया द्वारा किया गया।