अल्मोड़ा: गांधी पार्क में राष्टनीति संगठन के तत्वावधान में चल रहा तीन सूत्रीय आंदोलन गुरुवार को उस समय और अधिक तेज हो गया जब आंदोलन के प्रतिनिधि मदन सिंह (पूर्व प्रधान) ने यह मुद्दा अल्मोड़ा में आयोजित कैबिनेट मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के जनता दरबार में उठाया।
जनता दरबार में उपस्थित जिलाधिकारी द्वारा दिए गए एक बयान से विवाद खड़ा हो गया। जानकारी के अनुसार, जब मदन सिंह ने आंदोलन की मांगों को सामने रखा और ग्रामीणों की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया, तो डीएम ने कथित रूप से कहा कि “जनता को लग्जरी सुविधा चाहिए।” इस टिप्पणी पर मदन सिंह ने कड़ी आपत्ति जताई और इसे ग्रामीण जनता का अपमान करार दिया। हालांकि मौके पर मौजूद अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों ने स्थिति को संभालने का प्रयास किया।
वहीं, लोक निर्माण विभाग के एक अधिकारी ने मौके पर बताया कि संबंधित क्षेत्र के लिए डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार की जा चुकी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि आंदोलन की मांगों पर तकनीकी कार्रवाई प्रारंभ हो चुकी है।
मदन सिंह ने आरोप लगाया कि आंदोलन को जारी रखे हुए कई सप्ताह हो गए हैं, लेकिन अब तक जिला प्रशासन की ओर से कोई अधिकारी आंदोलनकारियों से संवाद करने नहीं पहुंचा है। उन्होंने कहा कि यह प्रशासन की असंवेदनशीलता और लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी को दर्शाता है। इस टिप्पणी के बाद जिला प्रशासन में हलचल मच गई और कुछ अधिकारी मीडिया और आमजन की नजरों से बचते हुए नजर आए।
आंदोलन में शामिल ग्रामीणों ने संयुक्त रूप से एक बयान जारी करते हुए कहा कि जिलाधिकारी का रवैया पक्षपातपूर्ण और ग्रामीणों के प्रति दुर्भावनापूर्ण है। उन्होंने आरोप लगाया कि डीएम का यह व्यवहार दर्शाता है कि वे दो दर्जन से अधिक गांवों की उपेक्षा कर रहे हैं और इस कारण उन्हें अल्मोड़ा से हटाया जाना चाहिए।
इस बीच, गांधी पार्क में आंदोलन पूरी शांति के साथ जारी रहा। पूरन सिंह बोरा, नंदन सिंह, गोविंद प्रसाद, नेहा समेत अनेक ग्रामीण आंदोलन स्थल पर उपस्थित रहे और तीन सूत्रीय मांगों को लेकर अपनी एकजुटता दिखाई। आंदोलनकारियों का कहना है कि जब तक सरकार और प्रशासन उनकी मांगों पर स्पष्ट निर्णय नहीं लेता, तब तक धरना जारी रहेगा।
तीन सूत्रीय आंदोलन की मुख्य मांगें –
1. क्षेत्र की सड़क और आधारभूत ढांचे का सुधार
2. पेयजल की उचित व्यवस्था
3. ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार
इस आंदोलन को अब व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने भी इसके समर्थन की घोषणा की है। आने वाले दिनों में आंदोलन और अधिक व्यापक रूप ले सकता है यदि प्रशासन ने संवाद और समाधान की पहल नहीं की।
सम्पूर्ण प्रकरण ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या प्रशासन वास्तव में जन भावनाओं और जरूरतों के अनुरूप कार्य कर रहा है या केवल दिखावटी व्यवस्था बनाकर अपनी जिम्मेदारियों से बच रहा है।