कुमाऊं की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में छोलिया नृत्य का विशेष स्थान है। यह नृत्य न केवल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की पहचान है, बल्कि अब देश की सीमाओं को पार करते हुए वैश्विक मंच पर भी अपनी छाप छोड़ चुका है। यह नृत्य एक ऐसा जीवंत प्रतीक है जो कुमाऊं की परंपरा, वीरता और धार्मिक आस्था को एक साथ समेटे हुए है।
छोलिया नृत्य की उत्पत्ति मुख्य रूप से शौर्य और युद्ध कौशल के प्रदर्शन से हुई थी। प्राचीन काल में यह नृत्य विवाह समारोहों में बारात के स्वागत में किया जाता था, ताकि दूल्हा एक योद्धा के रूप में प्रतिष्ठित हो सके। यह नृत्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे दमाऊं, नगाड़ा, रनसिंघा, हुरका, और बीन के साथ प्रस्तुत किया जाता है, जिनकी ताल और ध्वनि से वातावरण पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो जाता है।
हालांकि, बीते कुछ वर्षों में छोलिया नृत्य के प्रति लोगों की रुचि में गिरावट देखने को मिली। आधुनिकता की दौड़ में पारंपरिक कला रूपों को पीछे छोड़कर इलेक्ट्रॉनिक संगीत और बॉलीवुड स्टाइल डांस कार्यक्रमों को अधिक तवज्जो दी जाने लगी। कई सामाजिक समारोहों में छोलिया की जगह डीजे और पॉप म्यूजिक ने ले ली, जिससे यह अनमोल कला धीरे-धीरे मंचों से गायब होने लगी।

किन्तु अब फिर से एक सांस्कृतिक जागरूकता की लहर उठी है, जिसने छोलिया नृत्य को पुनर्जीवित करने का कार्य किया है। युवाओं और सांस्कृतिक संगठनों द्वारा इस पारंपरिक नृत्य को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। स्कूलों, महाविद्यालयों और सांस्कृतिक मेलों में छोलिया दलों को आमंत्रित किया जा रहा है। इसके अलावा, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्मों ने भी इस कला को एक नया आयाम दिया है, जिससे यह देश-दुनिया के कोने-कोने में पहुँच रही है।
आज छोलिया नृत्य न केवल विवाह जैसे धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में देखने को मिल रहा है, बल्कि यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी धूम मचा रहा है। इससे न केवल कलाकारों को पहचान मिल रही है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है।
छोलिया नृत्य का यह पुनर्जागरण यह सिद्ध करता है कि आधुनिकता के बीच भी यदि अपनी संस्कृति के मूल तत्वों को आत्मसात किया जाए, तो वे समय के साथ और भी अधिक निखरकर सामने आते हैं। यह केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि हमारी पहचान, हमारी विरासत और हमारी आत्मा का प्रतिबिंब है।
अब समय है कि हम सभी मिलकर इस अनमोल धरोहर को संरक्षित करें और इसे आने वाली पीढ़ियों तक गर्व के साथ पहुँचाएं।