लेखक: कपिल मल्होत्रा संवाददाता, अल्मोड़ा
अल्मोड़ा नगर, जो उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में पहचाना जाता है, वहां इन दिनों आम जनता की सुरक्षा को लेकर गंभीर लापरवाही सामने आई है। नगर क्षेत्र की सड़कों पर महीनों से पड़े भारी-भरकम पाइप अब न केवल यातायात में बाधा बन चुके हैं, बल्कि एक बड़ी दुर्घटना को भी आमंत्रित कर रहे हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन पाइपों को हटाने या व्यवस्थित करने की दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। एक समय पर एक जनप्रतिनिधि ने इस मुद्दे को लेकर आवाज अवश्य उठाई थी, लेकिन वह भी कुछ समय बाद सिर्फ खानापूर्ति बनकर रह गई। अब स्थिति यह है कि न कोई अधिकारी इस ओर ध्यान दे रहा है, और न ही कोई जनप्रतिनिधि इसे अपनी प्राथमिकता में मान रहा है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इन पाइपों को सड़क किनारे रखने से कई बार छोटे वाहन चालक दुर्घटना का शिकार होते-होते बचे हैं। बच्चों और बुजुर्गों के लिए तो यह पाइप जानलेवा अवरोध बन चुके हैं। बरसात के दिनों में यह स्थिति और भी भयावह हो सकती है, जब सड़कें फिसलन भरी हो जाएंगी और पाइपों की मौजूदगी के कारण संतुलन बनाए रखना बेहद कठिन हो जाएगा।
ऐसा नहीं है कि यह मामला प्रशासन की जानकारी में नहीं है। स्थानीय निवासियों द्वारा कई बार नगर निगम और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों से इसकी शिकायत की गई, लेकिन हर बार आश्वासन मिला और कार्रवाई नदारद रही। क्या यह शहर के नागरिकों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है?
इस उपेक्षा का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि यदि कोई दुर्घटना होती है, तो जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाएगा। फिर यह प्रश्न उठेगा कि आखिर जिम्मेदार कौन है—नगर निगम, विभागीय अधिकारी, या जनप्रतिनिधि?

यह मुद्दा सिर्फ एक सड़क या एक मोहल्ले तक सीमित नहीं है। यह प्रशासनिक उदासीनता और जवाबदेही की कमी का उदाहरण बन गया है, जो अल्मोड़ा जैसे संवेदनशील नगर की गरिमा पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
अब जरूरत इस बात की है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि मिलकर इस पर त्वरित संज्ञान लें। न केवल इन पाइपों को हटाने की कार्रवाई की जाए, बल्कि भविष्य में इस तरह की लापरवाहियों से बचने के लिए सख्त नीति और निगरानी तंत्र भी विकसित किया जाए।
आखिर कब तक जनता की सुरक्षा से ऐसे खिलवाड़ होता रहेगा? और कब तक जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी सिर्फ ज्ञापन देने तक सीमित रहेगी?


