वि०प० कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रयोगात्मक प्रक्षेत्र हवालवाग में कार्यरत दैनिक श्रमिकों ने अपनी लंबित मांगों को लेकर आवाज उठाई है। संस्थान में कुल 180-200 श्रमिक कार्यरत हैं, जो विभिन्न कार्यों में संलग्न रहते हैं। हाल ही में इन श्रमिकों ने संस्थान में जारी कुछ नीतियों और प्रबंधन के आचरण पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, खासकर उन श्रमिकों के प्रति जो वर्षों से संस्थान में काम कर रहे हैं।
वर्तमान में श्रमिकों द्वारा उठाई गई मुख्य समस्या यह है कि उन्हें अनावश्यक रूप से काम से ब्रेक (अवकाश) दिया जा रहा है। यह श्रमिकों के लिए बहुत ही कठिन और निंदनीय स्थिति उत्पन्न कर रहा है, क्योंकि अधिकांश श्रमिक लगभग 20-30 वर्षों से इस संस्थान के साथ जुड़े हुए हैं। ऐसे में, इन श्रमिकों का काम से बेक किया जाना उनके जीविकोपार्जन के लिए संकट पैदा कर रहा है।
इसके अतिरिक्त, श्रमिकों का आरोप है कि संस्थान के समन्वयक, डॉ. जयप्रकाश आदित्य का व्यवहार उनके प्रति संवेदनशील नहीं है। उनके अनुसार, समन्वयक का व्यवहार श्रमिकों के प्रति कठोर और असंवेदनशील है। श्रमिकों ने बताया कि समन्वयक उनसे अक्सर अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं और उन्हें अपमानित करने के लिए नकारात्मक तरीके से संबोधित करते हैं। इस तरह के व्यवहार से श्रमिकों में गहरी नाराजगी और असंतोष व्याप्त है।
सिर्फ़ कार्य से ब्रेक दिए जाने और अपमानजनक व्यवहार ही नहीं, बल्कि यह भी आरोप है कि समन्वयक की नीतियों और उनके आचरण ने कार्य स्थल पर एक नकारात्मक वातावरण उत्पन्न किया है। श्रमिकों का मानना है कि इस नकारात्मक वातावरण में कार्य करना अब उनके लिए असंभव हो गया है।
इन सभी समस्याओं के चलते श्रमिकों ने निर्णय लिया है कि वे तब तक कार्य पर नहीं लौटेंगे जब तक कि उपरोक्त समन्वयक को उनके पद से हटाया नहीं जाता। इसके अलावा, वे यह भी चाहते हैं कि संस्थान में श्रमिकों को अनावश्यक रूप से ब्रेक देने की नीति को समाप्त किया जाए। उनका कहना है कि यह नीति श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन करती है और उनके कार्य करने की स्थिति को खराब करती है।
इन श्रमिकों का स्पष्ट कहना है कि जब तक समन्वयक के व्यवहार में बदलाव नहीं आता और उन्हें उनके पद से नहीं हटाया जाता, तब तक वे कार्य पर वापस नहीं लौटेंगे। श्रमिकों का यह भी कहना है कि उन्हें अनावश्यक रूप से प्रताड़ित न किया जाए और भविष्य में किसी भी श्रमिक को ऐसे उत्पीड़न का सामना न करना पड़े।
यह स्थिति श्रमिकों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है और इसे हल करने के लिए संस्थान के उच्च अधिकारियों से उचित कार्रवाई की मांग की जा रही है। श्रमिकों की इस समस्या का समाधान न केवल उनके अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि संस्थान के कार्य पर्यावरण को भी बेहतर बनाएगा, जिससे समस्त कर्मचारियों और श्रमिकों के बीच सामंजस्य और सहयोग की भावना बढ़ेगी।
संस्थान के अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वे श्रमिकों की समस्याओं को गंभीरता से लेंगे और उचित समाधान सुनिश्चित करेंगे ताकि कार्यस्थल पर शांति और सद्भाव बना रहे।