उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में आयोजित ३८ वें राष्ट्रीय खेलों के दौरान कुछ ऐसे दृश्य सामने आए हैं, जिन्हें सत्यपथ न्यूज़ के कैमरे में कैद किया गया और जो आयोजन की व्यवस्था में गंभीर अनियमितताओं को उजागर कर रहे हैं। इन खेलों की सुंदरता और गरिमा के बावजूद, कुछ महत्वपूर्ण समस्याएं सामने आईं हैं, जो यह दर्शाती हैं कि आयोजकों ने आयोजन के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई और कई मुद्दों को नजरअंदाज किया गया।
असमान सुविधाएँ और अराजकता
एक प्रमुख समस्या जो कैमरे में कैद हुई, वह थी खिलाड़ियों को दी जाने वाली असमान सुविधाएं। जहां कुछ खिलाड़ियों को अत्यधिक आरामदायक और आधुनिक सुविधाएं प्रदान की जा रही थीं, वहीं अन्य खिलाड़ियों को न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं मिल पाई। अल्मोड़ा के ऐतिहासिक दशहरे महोत्सव के लिए इस मैदान का उपयोग किया जाता था, जहां मैदान में लगी घास को बचाने के लिए पहले कड़ी मेहनत की जा रही थी। लेकिन राष्ट्रीय खेलों के नाम पर वही घास अब रौंदी जा रही थी। यह घास जो पहले ऐतिहासिक महोत्सव के दौरान संरक्षित की जा रही थी, उसे खेलों की आड़ में नष्ट किया जा रहा था। यह असंवेदनशीलता और पर्यावरण के प्रति लापरवाही को दर्शाता है।
एंबुलेंस की लापरवाह गतिविधियाँ
एक और घटना जो कैमरे में कैद हुई, वह थी एंबुलेंस की लापरवाह गतिविधियाँ। मैदान के अंदर खाली एंबुलेंस को तेज रफ्तार से दौड़ते देखा गया, बिना किसी आपातकालीन स्थिति के। एंबुलेंस के कर्मचारियों से पूछने पर उन्होंने यह बताया कि उन्हें दवा लेने के लिए भी एंबुलेंस का उपयोग करना पड़ता है और इस कारण उन्हें तेज रफ्तार से वाहन चलाना पड़ता है। यह दावा कितनी सच्चाई पर आधारित था, यह सवाल उठता है। लेकिन क्या यह उचित था कि बिना किसी ठोस कारण के मैदान के अंदर खाली एंबुलेंस को तेज रफ्तार से दौड़ाया जाए और हूटर लगातार बजाए जाएं? यह न केवल खिलाड़ियों और दर्शकों के लिए असुविधाजनक था, बल्कि इससे पूरे माहौल में भय का भी संचार हो रहा था। एंबुलेंस का हूटर सुनकर जनता में यह भावना बन रही थी कि एक आपातकालीन स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जबकि स्थिति वैसी नहीं थी।
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स्थानीय नेताओं की प्राथमिकताएँ
इस दौरान कुछ और भी घटनाएँ सामने आईं, जो व्यवस्था की असमानता को दर्शाती हैं। हमारे शहर के कैबिनेट मंत्री, जिलाधिकारी और एसएसपी ने मानवता का परिचय देते हुए अपने वाहनों को मैदान से बाहर खड़ा किया और खुद पैदल ही मैदान में पहुंचे, जबकि पुलिस के अन्य अधिकारी अपने वाहनों को मैदान के अंदर ले आए। यह दृश्य यह दिखाता है कि कुछ लोग नियमों से ऊपर होते हैं, जबकि बाकी सभी को उन नियमों का पालन करना पड़ता है। क्या यह उचित था कि जिन लोगों को सुरक्षा और देखरेख करनी थी, वही नियमों को नजरअंदाज करते हुए मैदान के अंदर अपने वाहनों को लेकर आए।
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स्वास्थ्य की समस्याएँ और ठंड में बीमारियाँ
एक और गंभीर मुद्दा था, वह था ठंड के कारण खिलाड़ियों की तबीयत बिगड़ना। ठंड में खेलने के दौरान कई खिलाड़ी बीमार हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद आयोजकों ने खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं नहीं प्रदान की थीं। इसने यह सवाल खड़ा किया कि क्या आयोजकों ने खिलाड़ियों की सेहत के प्रति गंभीरता दिखाई। क्या किसी ने ठंड के मौसम और खिलाड़ियों की शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उचित प्रबंध किए थे?
निष्कर्ष
३८ वें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन में जो अनियमितताएँ और असमानताएँ सामने आईं, उन्होंने इस आयोजन की सफलता को प्रभावित किया। आयोजन की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, खासकर खिलाड़ियों के लिए सुविधाओं की समानता, सुरक्षा व्यवस्था, और चिकित्सा सुविधाओं में। एंबुलेंस का गलत तरीके से उपयोग और नेताओं की विशेष प्राथमिकताएँ भी यह दिखाती हैं कि आयोजकों को खेलों की गरिमा और उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए आयोजन करना चाहिए। यह आयोजन केवल खिलाड़ियों के प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा, और समुचित सुविधा के लिए भी महत्वपूर्ण है। अगर आयोजकों ने इन मुद्दों को नजरअंदाज किया, तो भविष्य में ऐसी घटनाएं देश की खेल नीति और राष्ट्रीय खेलों की छवि को प्रभावित कर सकती हैं।
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