पहाड़ों में रोड का चौड़ीकरण: विकास नहीं, विनाश है
कपिल मल्होत्रा
पहाड़ों की रानी, धरती का आभूषण,
यहां की हवाएं, जीवन की प्रेरणा,
लेकिन जब होती है मशीनों की गूंज,
तो कहीं कुछ टूटता है, कहीं कुछ बिखरता है।
रोड का चौड़ीकरण, एक सपना दिखाया,
विकास की राह पर सबको ले आया,
लेकिन क्या किसी ने देखा, समझा?
क्या ये वही राह है जो सबको मंजिल तक ले जाए?
मशीनें गूंजती हैं, पर्वतों को तोड़तीं हैं,
पानी की धाराओं को लहरातीं हैं,
पेड़-पौधों की पत्तियां उड़ जाती हैं,
प्राकृतिक सौंदर्य का चिरकालिक अस्तित्व खो जाता है।
यह विकास नहीं, विनाश की ओर बढ़ते कदम हैं,
जो पहाड़ों को पहचानते नहीं,
जो उनका इतिहास और संस्कृति जानते नहीं ,
वो क्यों नहीं देखते इन गलियों के जख्म?
विकास का मतलब केवल सड़क नहीं,
यह तो जीवन का संतुलन है,
सड़कों से अधिक, हमें चाहिए सुरक्षा,
हमें चाहिए हमारे पहाड़ों की शांति, हमारे धरोहर का सम्मान।
गांव की धरती का कोमल स्पर्श,
जहां खेतों में लहलहाती है हरियाली,
जहां तालाबों में बत्तखें तैरती हैं,
वहीं सड़कों का चौड़ीकरण एक भयावह घातक कदम है।
क्या इस विकास से हम अपनी नदियों को बचा पाएंगे?
क्या हम अपनी संस्कृति और पहचान को सुरक्षित रख पाएंगे?
क्या हम यह समझ पाएंगे कि जब तक पहाड़ जिंदा हैं,
तभी तक हम जीवन जीने की उम्मीद रखते हैं?
चौड़ी सड़कों से तात्कालिक फायदे हो सकते हैं,
लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह बड़ा नुकसान है,
धरती के हरे-भरे किले को तोड़कर,
हम क्या पाएंगे? एक खोखला विकास?
यह विकास नहीं, विनाश का बिगुल है,
यह हमारी धरोहर, संस्कृति, और सभ्यता की लूट है,
हमारी नदियों को उनके प्राकृतिक मार्गों से,
हम उनके अस्तित्व को समेट रहे हैं।
आइए, हम फिर से सोचें,
क्या यही सही है? क्या यही हमारी राह है?
हमारे पहाड़ों की सुंदरता, जीवन का संतुलन,
क्या वह खो जाएगा, सिर्फ विकास के नाम पर?
नहीं, हम चाहते हैं सचमुच का विकास,
जो पेड़-पौधों, नदियों, और जीवन को सहेजे,
जो हमें अपने प्राकृतिक धरोहर से जोड़कर,
हमारी पहचान को बचाए।
विकास का अर्थ हो, जीवन में संतुलन,
न कि विनाश, न कि हिंसा, न कि संघर्ष।