उत्तराखण्ड राज्य में शिक्षा विभाग और विभिन्न अन्य विभागों के बीच एक गंभीर मुद्दा सामने आया है, जिसमें गिरधर सिंह धनिक द्वारा सरकारी नौकरी में रहते हुए ठेकेदारी करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। यह मामला ना सिर्फ सरकारी कर्मचारी नियमावली का उल्लंघन कर रहा है, बल्कि इसमें बैंक द्वारा भी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ऋण दिए जाने का आरोप है। हालांकि, संबंधित विभागों द्वारा इस मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है और मामला दिन-ब-दिन उलझता जा रहा है।
लोक निर्माण विभाग और शिक्षा विभाग की निष्क्रियता
लोक निर्माण विभाग द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है कि क्या गिरधर सिंह धनिक ठेकेदार हैं या नहीं। विभाग ने पत्र जारी कर गिरधर सिंह धनिक से स्पष्टीकरण मांगा था, जिसमें यह कहा गया कि वह सरकारी नौकरी में कार्यरत थे, जबकि उन्होंने ठेकेदारी का कार्य किया। हालांकि, इस मामले में लोक निर्माण विभाग अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया है। इसने सिर्फ जांच का ड्रामा किया है और कोई FIR या कोर्ट में मामला दर्ज नहीं किया गया है। विभाग ने सात दिनों के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया था, परंतु अब तक कोई ठोस उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है।

बैंक द्वारा ऋण प्रदान करने में गड़बड़ी
बैंक की भी भूमिका इस मामले में संदिग्ध रही है। बैंक ने गिरधर सिंह को ठेकेदार के रूप में 75 लाख रुपये का ऋण दिया, जबकि उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी को छुपाया और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ऋण लिया। यह मामला उस समय सामने आया जब मुख्यमंत्री कार्यालय में शिकायत दर्ज की। इस मामले में, शिकायत करता ने यह स्पष्ट किया कि गिरधर सिंह ने खुद को ठेकेदार दिखा कर गुमराह किया, जबकि वह एक सरकारी कर्मचारी थे। यह न केवल बैंक को धोखा देने का मामला है, बल्कि सरकारी कर्मचारी नियमों का भी उल्लंघन है, क्योंकि सरकारी कर्मचारी किसी भी प्रकार के ठेकेदारी के कार्य में संलग्न नहीं हो सकते।
शिक्षा विभाग का भी संदिग्ध रवैया
शिक्षा विभाग ने भी इस मामले में सही तरीके से कार्रवाई नहीं की। खण्ड शिक्षा अधिकारी द्वारा पत्र लिखा गया, जिसमें गिरधर सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई, परंतु शिक्षा विभाग ने भी सिर्फ पत्राचार किया और कोई ठोस कदम नहीं उठाया। बैंक ने शिक्षा विभाग से गिरधर सिंह के वेतन खाते में रोक लगाने की मांग की थी, ताकि ऋण की वसूली की जा सके। हालांकि, शिक्षा विभाग ने अभी तक इस मामले में कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया है, और मामला अदालत में जाने की स्थिति में है।

बैंक और शिक्षा विभाग के पत्राचार में खामियां
बैंक और शिक्षा विभाग के बीच पत्राचार से यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों विभागों के बीच जानकारी का आदान-प्रदान और समन्वय की कमी रही है। बैंक ने गिरधर सिंह के वेतन खाते में रोक लगाने का अनुरोध किया था, लेकिन शिक्षा विभाग ने केवल एक पत्र भेजा और इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसका नतीजा यह हुआ कि गिरधर सिंह के वेतन खाते से ऋण वसूली की प्रक्रिया में कोई प्रगति नहीं हो पाई। शिक्षा विभाग और बैंक के अधिकारियों को यह जिम्मेदारी थी कि वे इस मामले को गंभीरता से लेकर तत्काल कार्रवाई करते, ताकि सरकारी नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
यह मामला गंभीर है और संबंधित विभागों को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। सबसे पहले, लोक निर्माण विभाग को चाहिए कि वह गिरधर सिंह के खिलाफ जांच को समाप्त कर एक स्पष्ट निर्णय ले, चाहे वह ठेकेदार हों या नहीं। अगर वह ठेकेदार हैं, तो उन्हें सरकारी नौकरी छोड़ने की आवश्यकता है, और इसके साथ ही ठेकेदारी से संबंधित कार्यों पर प्रतिबंध भी लगाया जाना चाहिए।
इसके अलावा, शिक्षा विभाग को इस मामले में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और गिरधर सिंह के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करनी चाहिए। शिक्षा विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारी कर्मचारी किसी भी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में संलिप्त न हों, विशेष रूप से जब वे सरकारी सेवा में कार्यरत हों।
बैंक को भी इस मामले में जवाबदेही तय करनी चाहिए, क्योंकि उसने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ऋण प्रदान किया है। बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे से कोई भी ऋण आवेदन करते समय उचित दस्तावेजों की जांच की जाए, ताकि कोई गुमराह न कर सके।
गिरधर सिंह धनिक द्वारा सरकारी सेवा में रहते हुए ठेकेदारी का कार्य करना और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बैंक से ऋण प्राप्त करना, दोनों ही गंभीर अपराध हैं। इसके बावजूद, संबंधित विभागों की निष्क्रियता और लापरवाही से यह मामला अभी तक सुलझा नहीं पाया है। इस स्थिति में, अगर संबंधित विभाग अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए सख्त कदम उठाते हैं, तो न सिर्फ कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, बल्कि भविष्य में इस तरह के मामलों की पुनरावृत्ति को भी रोका जा सकता है।