जिला प्रशासन अल्मोड़ा द्वारा मल्ला महल में 9 से 11 मार्च 2025 तक आयोजित नशा मुक्त होली महोत्सव के शीर्षक पर राष्ट्र नीति संगठन के अध्यक्ष एडवोकेट विनोद तिवारी ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इस संदर्भ में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नाम ज्ञापन भेजा और इस कार्यक्रम के विरोध में अपनी आपत्ति दर्ज करवाई।
एडवोकेट तिवारी ने अपने ज्ञापन में कहा कि होली एक सनातन परंपरा का त्यौहार है, जिसे ऋग्वेद में बसंत उत्सव, यजुर्वेद में कृषि उत्सव और नरसिंह पुराण व विष्णु पुराण में भक्त प्रहलाद और होलिका दहन का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, भागवत पुराण में राधे और कृष्णा की लठमार होली का वर्णन है, लेकिन इन सभी धार्मिक ग्रंथों में कहीं भी नशे से संबंधित कोई भी उल्लेख नहीं मिलता। इस प्रकार, उन्होंने सवाल उठाया कि कैसे होली के इस महान पर्व को नशे से जोड़ा जा सकता है। तिवारी ने जोर देते हुए कहा कि अगर यह आयोजन नशा मुक्त है, तो इस कार्यक्रम का शीर्षक “नशा मुक्त होली महोत्सव” रखना उचित नहीं है, क्योंकि यह होली के पारंपरिक स्वरूप और संस्कृति से मेल नहीं खाता।
उन्होंने जिला प्रशासन से अपील की कि वह या तो इस कार्यक्रम का शीर्षक वापस लें, या फिर ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत करें जो यह साबित करे कि होली का किसी भी रूप में नशे से संबंध है। तिवारी ने यह भी आरोप लगाया कि इस कार्यक्रम में स्थानीय सांसद, केंद्रीय मंत्री और शहर के मेयर भी उपस्थित थे, और वह जिन पार्टियों से जुड़े हुए हैं, वे खुद को सनातन परंपरा का ब्रांड एंबेसडर मानती हैं। ऐसे में, इस प्रकार के आयोजन से अल्मोड़ा के 5 लाख से अधिक सनातनी परंपरा मानने वाले लोगों का अपमान किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि जिस पार्टी के नेता इस कार्यक्रम में शामिल हुए हैं, वह पार्टी खुद को हिंदू संस्कृति और परंपरा का पालन करने वाली पार्टी के रूप में प्रस्तुत करती है। ऐसे में इस प्रकार का आयोजन उनके दृष्टिकोण और पार्टी की विचारधारा से भी मेल नहीं खाता। तिवारी ने इस आयोजन के शीर्षक को बदलने की मांग की और कहा कि यह बदलाव शीघ्र किया जाए ताकि अल्मोड़ा की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को सम्मानित किया जा सके।

इस ज्ञापन के माध्यम से तिवारी ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य सिर्फ नशे से मुक्ति और होली की पवित्रता को बनाए रखना है, न कि किसी राजनीतिक या सामाजिक विवाद को जन्म देना। उनका मानना है कि इस प्रकार के आयोजनों को धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए।