26 नवंबर को संविधान दिवस के अवसर पर सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के विधि विभाग में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विभाग के कई वरिष्ठ प्रोफेसरों की उपस्थिति में संविधान के महत्व, संविधानवाद और इसके लागू होने के 75 वर्षों के दौरान उत्पन्न चुनौतियों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। यह कार्यक्रम विधि विभाग के विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण शैक्षिक अवसर साबित हुआ, जिसमें संविधान के महत्व को समझने और इसे संरक्षित करने के उपायों पर विचार किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर जे एस बिष्ट के उद्घाटन वक्तव्य से हुई, जिन्होंने संविधान को देश की सर्वोच्च विधि के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज और राष्ट्र के लिए दिशा-निर्देश देने वाली एक जीवनरेखा है। प्रोफेसर बिष्ट ने सभी नागरिकों से अपील की कि वे संविधान को न केवल कागज पर, बल्कि अपने जीवन में भी पूरी तरह से सम्मानित करें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में पूरी तरह सक्षम है।
कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रोफेसर दिनेश कुमार भट्ट ने संविधान की विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत का संविधान नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय के मौलिक अधिकार प्रदान करता है। उनका मानना था कि संविधान इन अधिकारों की गारंटी देकर भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में सफल रहा है। वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र का आधार है।
वरिष्ठ प्रोफेसर अमित पंत ने संविधान की सर्वोच्चता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विधि छात्रों को संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। उनका मानना था कि संविधान के विचारों और सिद्धांतों पर निरंतर चिंतन और मनन करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसके उद्देश्यों को सही तरीके से लागू किया जा सके। विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डीपी यादव ने संविधान को नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने वाला बताया और कहा कि संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों को सुरक्षित रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
वरिष्ठ प्रोफेसर अरशद हुसैन ने संविधान की प्रस्तावना का पालन और उसे आत्मसात करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार, संविधान की प्रस्तावना में दी गई आदर्शों को जीवन में उतारना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए, ताकि हम लोकतंत्र को सही दिशा में आगे बढ़ा सकें। प्रोफेसर पी एस बोरा ने संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों की सुरक्षा पर चर्चा की और कहा कि इन्हें संजीदगी से संरक्षित किया जाना चाहिए, ताकि किसी भी स्थिति में इन अधिकारों का उल्लंघन न हो।
कार्यक्रम में उपस्थित लॉयर विनोद तिवारी ने संविधान को संविधान सभा के महान नेताओं, विशेष रूप से बाबा साहब अंबेडकर के विचारों का प्रतिबिंब बताया। उन्होंने कहा कि संविधान को समझना केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार, बाबा साहब अंबेडकर का दृष्टिकोण समाज में समानता, न्याय और स्वतंत्रता की स्थापना के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
इसके अलावा, विधि विभाग के अन्य प्रोफेसरों फराह दीवा, पुष्पेश जोशी, प्रियंका सिंह, वंदना टम्टा, सुमित और विभाग के कर्मचारी राजेश पांडे, जगदीश सिंह, भुवन जोशी, सतीश, आनंद ने भी कार्यक्रम में भाग लिया और संविधान के महत्व पर अपने विचार रखे।
विधि विभाग के छात्रों ने भी इस कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी की। छात्रों ने संविधान के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए और यह समझने का प्रयास किया कि संविधान को रक्षित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। भूपेंद्र सिंह नेगी, अनिरुद्ध पंत, फरीन बानो, कमल दानू, उमेश कांडपाल, दीपक आर्या, भारत भट्ट, नितेंद्र बिष्ट, अमित बोरा, अनुष्का पांडे, सौम्या सहित सैकड़ों छात्र इस अवसर पर उपस्थित थे और उन्होंने संविधान की महिमा को समझने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
इस प्रकार, इस संविधान दिवस के कार्यक्रम ने सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के विधि विभाग के छात्रों और शिक्षकों को संविधान के सिद्धांतों और उसके संरक्षण के महत्व के बारे में गहरी समझ प्रदान की।