अल्मोड़ा प्रेस को जारी एक बयान में पूर्व छात्रसंघ उपसचिव और वर्तमान नगर महामंत्री संगठन के वैभव पाण्डेय ने प्रदेश सरकार की नीतियों पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि अक्टूबर का महीना समाप्त होने को है, लेकिन प्रदेश के महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव कराने में सरकार पूरी तरह असफल रही है।
पाण्डेय ने यह भी कहा कि इस देरी के पीछे सरकार की छात्र संघ चुनावों को टालने की मंशा साफ दिखाई दे रही है, जो कि छात्र राजनीति के दमन का एक बड़ा षड्यंत्र है। उनका कहना था कि हमेशा सितंबर में छात्र संघ चुनाव सम्पन्न कराए जाते थे, लेकिन इस बार स्थिति काफी भिन्न है। अक्टूबर का महीना खत्म हो रहा है और चुनावों का कोई संकेत नहीं है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दिखाती है कि सरकार जानबूझकर छात्र संघ चुनावों को टालने की कोशिश कर रही है, जिससे छात्र राजनीति पर अंकुश लगाया जा सके।
उन्होंने भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि उत्तराखंड में चुनाव कराने से सरकार को अनजान सा डर क्यों है। चाहे वह निकाय चुनाव हों या छात्र संघ चुनाव, सरकार इन चुनावों को टालने में लगी है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन है और सरकार की नाकामी को दर्शाता है।
वैभव पाण्डेय ने यह भी कहा कि सरकार शायद भूल रही है कि संविधान के भीतर सभी प्रक्रियाएं निर्धारित हैं और लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव कराना अनिवार्य है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार की पहले से ही काफी किरकिरी हो चुकी है। ऐसे में, सरकार को तुरंत छात्र संघ चुनावों की तिथि घोषित करनी चाहिए और नगर निकाय चुनाव पर भी स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।
पाण्डेय ने कहा कि छात्र संघ चुनाव न केवल छात्रों के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि यह लोकतंत्र की आधारशिला भी हैं। जब छात्र अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते, तो यह उनकी आवाज़ को कुचलने के समान है। उन्होंने सभी छात्र संगठनों से अपील की कि वे इस विषय पर एकजुट होकर आवाज उठाएं और सरकार को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराएं।
उन्हें आशंका है कि यदि यह स्थिति बनी रही, तो इसका गंभीर असर छात्रों के राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर पड़ेगा। छात्रों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए और सरकार को यह बताना चाहिए कि वे अपनी आवाज़ उठाने के लिए तैयार हैं।
अंत में, वैभव पाण्डेय ने कहा कि छात्र संघ चुनावों में देरी से यह स्पष्ट होता है कि सरकार की छात्र विरोधी नीतियों का अंत अब जरूरी है। छात्रों को एकजुट होकर सरकार की असफलता को उजागर करना होगा और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सशक्त तरीके से सामने आना होगा।