भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के प्रयोगात्मक प्रक्षेत्र हवालबाग में “विकसित भारत हेतु उन्नत पर्वतीय कृषि” थीम पर आधारित 50वें कृषि विज्ञान मेले का आयोजन किया गया। इस समारोह के मुख्य अतिथि डा. हरि शंकर गुप्त, अध्यक्ष, कृषि आयोग, असम एवं पूर्व महानिदेशक, बोरलॉग इंस्टिट्यूट फॉर साउथ एशिया रहे। उन्होंने संस्थान की शोध उपलब्धियों की सराहना करते हुए बताया कि पिछले कुछ दशकों में भारतीय कृषि ने अभूतपूर्व विकास किया है, और अब हमारा देश खाद्यान्न उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इसके लिए वैज्ञानिकों और किसानों दोनों की मेहनत का योगदान है। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों के युवाओं को विकसित तकनीकों को अपनाने का आह्वान किया ताकि वे कृषि में सुधार लाकर क्षेत्रीय पलायन को रोक सकें और अपनी आय को बढ़ा सकें।
संस्थान के निदेशक डा. लक्ष्मीकान्त ने संस्थान द्वारा किए गए शोध कार्यों और विकसित तकनीकों का विवरण दिया। उन्होंने बताया कि संस्थान ने 200 से अधिक प्रजातियों का विकास किया है और पिछले वर्ष 14 नई प्रजातियां विकसित की हैं। इनमें मक्का, धान, मंडुवा और मादिरा की प्रजातियां शामिल हैं। इसके साथ ही, संस्थान ने कुछ नई तकनीकों का पेटेंट भी आवेदन किया है। उन्होंने संस्थान की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि की जानकारी दी।
समारोह में कृषि विभाग के अधिकारियों और प्रगतिशील किसानों ने भी अपने अनुभव साझा किए और संस्थान द्वारा प्रदान की गई तकनीकों का लाभ उठाने की बात की। कृषि विज्ञान मेले में प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कई संस्थानों और विभिन्न सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं ने भाग लिया। इस दौरान, लगभग 800 किसानों ने मेले में भाग लिया और विभिन्न कृषि संबंधित मुद्दों पर चर्चा की।
समारोह के दौरान कई नई तकनीकों और प्रजातियों का लोकार्पण किया गया, जिसमें मक्का, मडुवा और मशरूम की प्रजातियों के साथ-साथ सब्जी मटर की नई प्रजाति का बीजोत्पादन भी शामिल था। इसके अतिरिक्त, किसान गोष्ठियों में पर्वतीय कृषि से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा की गई और उनके समाधान के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने त्वरित प्रतिक्रिया दी।
इस कृषि विज्ञान मेला ने पर्वतीय कृषि के विकास और किसानों की आय में सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं और इसे कृषि क्षेत्र में नवीनता और प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना गया।