गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा में संस्थान के वार्षिक दिवस कार्यक्रम के अवसर पर दिनांक 10 से 11, सितम्बर, 2022 को “हिमालयी वनों की पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली और सेवाओं का पादप कार्यात्मक विशेषता आधारित मूल्यांकन” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला-सह-विचार-मंथन का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला का आयोजन गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान ने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद, देहरादून के सहयोग से किया.

कार्यशाला का उद्देश्य राष्ट्रीय हिमालयी मिशन अध्ययन (एनएचएमएस) से वित्त पोषित  परियोजना “मानवजनित परिवर्तन के तहत हिमालय समशीतोष्ण वन की पारिस्थितिकी तंत्र कार्यप्रणाली और सेवाएं: एक पादप कार्यात्मक विशेषता आधारित मूल्यांकन” में निष्पादित किए जा रहे कार्यों का समर्थन और मार्गदर्शन करना है। विशेष रूप से, कार्यशाला का उद्देश्य भारतीय हिमालय के समशीतोष्ण वनों पर विभिन्न स्थानिक-अस्थायी पैमाने पर बड़े पैमाने पर उत्पन्न आंकड़ों के आधार पर जानकारी के मूल्यांकन और संश्लेषण के बारे में चर्चा करना था। कार्यशाला से निकलने वाले प्रमुख संदेशों में, हिमालयी वनों में पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली और सेवाओं के पादप कार्यात्मक विशेषता आधारित मूल्यांकन के लिए एक दृष्टिकोण पत्र विकसित करने पर जोर दिया गया।

इस कार्यशाला में देश के हिमालयी क्षेत्रों में कार्य कर रहे विषय विशेषज्ञों सहित 60 से अधिक व्यक्तियों ने प्रतिभाग किया. कार्यक्रम के उदघाटन सत्र में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा संस्थान के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केंद्र के केंद्र प्रमुख डा० आई०डी० भट्ट ने सभी विषय विशेषज्ञों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया एवं दो दिवसीय कार्यशाला के कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत करवाया. उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम संस्थान में चल रही परियोजना एन.एम.एच.एस.-एफ.आर.आई. एवं एन.एम.एच.एस.ई. के सौजन्य से किया जा रहा है. डा० आई०डी० भट्ट एवं डा० राजीव पाण्डेय (आई.सी.एफ.आर.आई.) द्वारा “मानवजनित परिवर्तन के तहत हिमालय समशीतोष्ण वन की पारिस्थितिकी तंत्र कार्यप्रणाली और सेवाएं: एक पादप कार्यात्मक विशेषता आधारित मूल्यांकन” के विषय में सभी प्रतिभागियों को अवगत कराया. संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा संस्थान के पर्यावरण आंकलन और जलवायु परिवर्तन केंद्र के प्रमुख डा० जे०सी० कुनियाल ने राष्ट्रीय मिशन ऑन सस्टेनेबल हिमालयन इकोसिस्टम टास्कफोर्स 03 के कार्यक्षेत्र एवं उसके अंतर्गत किये जा रहे कार्यों से सभी प्रतिभागियों को अवगत करवाया. पर्यावरण संस्थान के निदेशक प्रो० सुनील नौटियाल ने इस अवसर पर सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा कार्यशाला की सफलता हेतु अपनी शुभकामनाएं दी.

उदघाटन सत्र में विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित प्रो० जफ़र ए० रेशी, कश्मीर विश्वविद्यालय, डा० आर०बी०एस० रावत, पूर्व एच.ओ.एफ.एफ., उत्तराखंड सरकार तथा श्री हेम पाण्डेय, पूर्व सचिव, भारत सरकार ने कार्यशाला के विषय में अपनी टिप्पणियां दी.  प्रो० जफ़र ए० रेशी तथा डा० आर०बी०एस० रावत ने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का सही तरह से मूल्यांकन करने तथा हिमालयी वनों की पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली और सेवाओं का पादप कार्यात्मक विशेषता आधारित मूल्यांकन सम्बंधित कार्यों को और दृढ़ता से करने की आवश्यकता है. श्री हेम पांडे ने सुझाव दिया कि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन तीन अलग अलग तरह के वनों (अबाधित, अर्द्ध अवक्रमित तथा अवक्रमित) में करना चाहिए जिससे ये पता किया जा सके कि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में कितनी भिन्नता है और उनका क्या प्रभाव पड़ रहा है. कार्यशाला के प्रथम दिवस का समापन संस्थान के वैज्ञानिक डा० के०सी० सेकर के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

कार्यशाला के द्वितीय दिवस के कार्यक्रम से पूर्व कार्यशाला में आये विषय विशेषज्ञों ने संस्थान के प्रकृति विश्लेषण केंद्र तथा सूर्यकुंज का भ्रमण किया. कार्यशाला के द्वितीय दिवस में कार्यशाला को दो तकनीकी सत्रों में विभाजित किया गया. पहले तकनीकी सत्र “हिमालयी वनों की पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली और सेवाओं का विशेषता आधारित मूल्यांकन” की अध्यक्षता प्रो० जफ़र ए० रेशी ने तथा मेजबानी डा० राजीव पाण्डेय ने की. इस सत्र में हिमालयी वनों की पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली और सेवाओं का पादप कार्यात्मक विशेषता आधारित मूल्यांकन से सम्बंधित गहन विचार मंथन किया गया. सत्र में देश के विभिन्न स्थानों से आये विषय विशेषज्ञों द्वारा उपरोक्त परियोजनाओं को सुचारू रूप से मानव हितों की समझ रख कर किस तरह कार्य किया जाए इस विषय पर सुझाव प्रदान किये जैसे जम्मू और कश्मीर को कार्यक्षेत्र में सम्मिलित करना और विशेष विषय विशेषज्ञों की सलाह लेना तथा उनकी कार्य कुशलता का लाभ परियोजना के उद्देश्यों को पूरा करने हेतु लेना तथा इस कार्य से सम्बंधित डेटा को एकीकृत कर पर्यावरण और समाज के हित में लाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

दूसरे तकनीकी सत्र “वन संसाधन और पौधों की जैव विविधता” की अध्यक्षता डा० जी०एस० रावत, पूर्व निदेशक, भारतीय वन्य जीव संस्थान ने तथा मेजबानी डा० आई०डी० भट्ट ने की. इस सत्र में हिमालयी क्षेत्र के वन संसाधनों एवं पादपों की जैव विविधता विषय पर विचार मंथन किया गया. इस सत्र में डी.एफ.ओ., अल्मोड़ा श्री महातिम यादव जी द्वारा वनाग्नि नियंत्रण एवं प्रबंधन हेतु विषय विशेषज्ञों के सम्मुख प्रस्तुति दी जिसमे उम्होने सेटेलाईट चित्रों के द्वारा वनाग्नि को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है इस पर अपने अनुभव साझा किये तथा पर्यावरण संस्थान के साथ मिल कर कार्य करने की इच्छा जाहिर की जिसे संस्थान के निदेशक सहित समस्त विषय विशेषज्ञों द्वारा सहमती प्रदान की गयी. देश के विभिन्न स्थानों से आये विषय विशेषज्ञों द्वारा उपरोक्त परियोजनाओं को सुचारू रूप से मानव हितों की समझ रख कर किस तरह कार्य किया जाए इस विषय पर सुझाव प्रदान किये.

कार्यशाला के तकनीकी सत्रों में  श्री हेम पांडे, पूर्व सचिव, भारत सरकार, डा० आर०बी०एस० रावत, पूर्व एच.ओ.एफ.एफ., उत्तराखंड सरकार, डा० जी०एस० रावत, पूर्व निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान, प्रो० ज़फर ए० रेशी, कश्मीर विश्वविद्यालय, डा० एस०एस० सामंत, पूर्व निदेशक, हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, प्रो० अनिल बिष्ट, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल, डा० शाहिद रसूल, आई.आई.आई.एम, जम्मू, प्रो० एन०के० दुबे, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, प्रो० एस०पी० सती, वी.सी.एस.जी., रानीचौरी, प्रो० अनिल यादवा, एस.एस.जे. विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा, प्रो० बलवंत कुमार, एस.एस.जे. विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा, डा० तारा चंद, आई.सी.एफ.आर.आई., डा० बी०एस० नायक, टी.आई.एस.एस., हैदराबाद, डा० आशीष तिवारी, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल, प्रो० एल.एम्. तिवारी, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल ने प्रतिभाग किया तथा कार्यशाला विषय पर गहन विचार-मंथन किया. कार्यशाला में एन.डी.टी.वी. के मुख्य सम्पादक श्री सुशील बहुगुणा भी शामिल थे.

कार्यशाला में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा सामाजिक एवं आर्थिक विकास केंद्र के प्रमुख डा० जी०सी०एस० नेगी ने भी अपने विचार व्यक्त किये. कार्यशाला में संस्थान के वैज्ञानिक डा० के०सी० सेकर, डा० सतीश चन्द्र आर्य, डा० मिथिलेश सिंह, डा० संदीपन मुख़र्जी, डा० वसुधा अग्निहोत्री, डा० हर्षित पन्त, डा० सुमित राय, डा० आशीष पाण्डेय, डा० विक्रम नेगी तथा संस्थान के शोध छात्रों सहित 60 से अधिक प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया.

संस्थान के निदेशक ने इस कार्यशाला को हिमालयी क्षेत्र के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण बताया और इसकी सफलता हेतु सभी को शुभकामनायें दी. कार्यशाला का समापन डा० राजीव पाण्डेय (आई.सी.एफ.आर.आई.) के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।