गो0 ब0 पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल द्वारा चलाई जा रही ईको-स्मार्ट आदर्श ग्राम परियोजना के अन्तर्गत चयनित ज्योली ग्राम समूह के कनेली एवं कुज्याड़ी ग्राम सभा में अर्न्तराष्ट्रीय महिला दिवस एवं लाइफ स्टाईल फार एनवायरनमेंट थीम के तहत दिनांक 28 फरवरी से 1 मार्च 2023 तक मोटे अनाजो से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद तैयार करने पर दो दिवसीय प्रषिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुज्याड़ी, दिलकोट, कनेली, एवं बिसरा गावों के 60 ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया, जिसमें अधिकतर महिला कृषक शामिल थी। प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रतिभागियों को मोटे अनाज जैसे मडुवा, झुंगरा, कोंणा, इत्यादि से विभिन्न प्रकार के गुणवत्ता युक्त उत्पाद जैसे- बिस्कुट, केक, बर्फी, लडडू, इत्यादि खाद्य उत्पाद घर में ही आसान तरीके से तैयार करने की विधियों के बारे में व्यवहारिक जानकारी दी गयी। प्रशिक्षण कार्यक्रम में इन उत्पादों की गुणवत्ता बनाये रखने पर विशेष जोर दिया गया ताकि ग्रामीणों द्वारा तैयार इन उत्पादों को बाजार में ग्राहक आसानी उपलब्ध हो सकें। प्रशिक्षण कार्यक्रम में पर्यावरण संस्थान की ओर से वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा सामाजिक एवं आर्थिक विकास केन्द्र के केन्द्र प्रमुख डा. पारोमिता घोष ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में परम्परागत रूप से मोटे अनाजों की खेती होती थी लेकिन वर्तमान मोटे अनाजों की खेती की तरह यहॉ के निवासियों का रूझान कम हो रहा है, इस लिए मोटे अनाजों की उपयोगिता वृद्धि कर इससे आय अर्जित की जा सकती है जिससे कि लोग फिर से मोटे अनाजों की खेती की तरफ मुड़ें। कार्यक्रम में संस्थान की वैज्ञानिक डा0 शैलजा पुनेठा ने प्रतिभागियों को माटे अनाजों की उपयोगिता तथा वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के गुर सिखाये। विषय विषेषज्ञ अंजली तिवारी एवं अवंतिका ने मोटे अनाज से बिस्कुट, बर्फी, केक, एवं लडडू बनाने पर प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया। कार्यक्रम का आयोजन एवं संचालन डा. देवेन्द्र चौहान एवं डी.एस. बिष्ट ने किया। कार्यशाला में उपस्थित कुज्याड़ी ग्राम के प्रगतिशील किसान बिशन सिंह, आषुतोष कनवाल एवं कनेली ग्राम सभा के प्रधान दीपा उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए संस्थान का धन्यवाद अदा किया। कार्यशाला में उपस्थित सभी किसान इस बात से सहमत थे कि मोटे अनाजों की उपयोगिता वृद्धि कर तथा इससे आजीविका वृद्धि की जा सकती है जिससे किसान आत्मनिर्भर बनेगा तथा पुनः मोटे अनाजों की खेती की तरफ जायेगा जो पर्यावरणीय दृष्टि से भी बहुत आवश्यक है।