पूरे देश में जहाँ डिजिटल इंडिया की बात हो रही है। वही देखने को मिल रहा है कि आज बाजार से व्यापार खत्म होता चला जा रहा है। इस व्यापार के खत्म होने में सबसे बड़ा हाथ कहीं ना कहीं हम सभी का है। ऑनलाइन शॉपिंग के चलते आज हम फिर एक बार विकलांग होते चले जा रहे हैं। मानवता को भूलते चले जा रहे हैं। आज दिवाली के मौके पर बाजार में दुकानें सुनसान नजर आ रही हैं। हर कोई ऑनलाइन के पीछे भाग रहा है। लेकिन हम यह भूल गए यह सभी वह व्यापारी हैं जो ऑनलाइन के जरिए हमें सामान के बदले में जो पैसा लेते हैं वह कहीं ना कहीं हमारे देश से बाहर जा रहा है। जिसका फायदा हमारे देश को नहीं अपितु विदेशों को मिल रहा है। और बाजार का ये छोटा व्यापारी है वह हर पल हमारे साथ हर सुख दुःख में खड़ा नजर आता है। हमारे देश में होने वाले तीज त्यौहारों या कोई भी कार्यक्रम के लिए जब आर्थिक सहायता की जरूरत पड़ती है तो यही व्यापारी हाथ आगे बढ़ा कर के काम करता है। लेकिन फिर भी हम इन व्यापारियों से सामान लेने के बजाय हम ऑनलाइन की तरफ भाग रहे हैं। हम मानवता को भूलते चले जा रहे हैं। खाली बाजार से सामान लेना उस व्यापारी का हित करना नहीं, अपितु हम सभी मानवता के लिए एक दूसरे से संबंध बनाने के लिए अपने आसपास के दुकानदारों से सामान खरीदते हैं। अपने सुख-दुख का भागीदार बनाते हैं। आने वाली विपत्ति में कभी भी ऑनलाइन व्यापारी हमारा साथ नहीं देता है। बल्कि हमारे पास का दुकानदार ही हमें सहायता के लिए आगे बढ़ता है। हम अपने व्यवहार को बदलते चले जा रहे हैं। आज हम हर छोटी से छोटी चीज ऑनलाइन से मंगा कर अपने दुकानदार, अपने पड़ोसी और अपने सहयोगी से दूर होते चले जा रहे हैं। आज दिवाली के समय व्यापार इतना खत्म हो गया है, किस सभी व्यापारी जो सामान बेचने के लिए लेकर के आए हैं। उसकी बिक्री ना होने के कारण आज उनके घर के चूल्हे भी हल्के होते नजर आ रहे है। ऐसे में हमें सोचना पड़ेगा कि हम कहां जा रहे हैं। हम मानवता को भुलाकर विदेशों में अपना पैसा भेज रहे हैं। क्या यह सही है? या यह सही है कि हम जो चीज हमें हमारे आसपास ना मिले उसे ऑनलाइन खरीदें? या वह चीजें जो हमें आसानी से अपने बाजार में मिल जाती हैं उसे खरीदें?
ऑनलाइन शॉपिंग विदेशों से हमारे देश में आई है। जबकि विदेशी देशों में इस व्यवसाय को उन बुजुर्गों के लिए या हैंडीक्राफ्ट लोगों के लिए बनाया गया था। जो लोग बाजार नहीं जा सकते। उनकी दवाई या और अन्य जरूरत की चीजों के लिए विदेशों में ऑनलाइन शॉपिंग का चलन शुरू हुआ था। लेकिन हमारे देश में आज ऑनलाइन शॉपिंग ने इतना जोर पकड़ लिया है कि हम अपने जानने वाले व्यापारी से भी सामान लेना पसंद नहीं करते। क्या यह सही है? इसको एक बार सोचें कि क्या हम सही कर रहे हैं? हम अपने व्यापारी से व्यापार ना कर हम एक ऐसे व्यापारी से व्यापार कर रहे हैं, जो कभी भी हमारे सुख-दुख का भागीदार नहीं बनता सोचें, जबकि आज रोज एक न एक घटना ऑनलाइन शॉपिंग से ठगी की आती है फिर भी हम उसकी ओर खिंचे चले जा रहे हैं। इस दिवाली में अपनी सोच को बदलते हुए अपने नजदीकी दुकानदार से कुछ सामान जरूर खरीदें।

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