गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र द्वारा संरक्षण शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु शीर्षक ’’उत्तराखंड में औषधीय पादपों की विविधता तथा रोजगार के अवसर’’ पर 19 सितम्बर 2022 को वेबिनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम को प्रारम्भ करते हुए पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक डा० आशीष पांडे द्वारा सभी प्रतिभागियों का अभिनंदन किया गया एवं उन्होनें बताया कि संस्थान का जैवविविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र वर्ष 1993 से ही संरक्षण शिक्षा को बढावा देने हेतु कार्यरत है। इसी क्रम को बढ़ाते हुए वर्तमान में उत्तराखंड के लोहाघाट एवं बारकोट विकासखण्ड को चयनित किया गया है ताकि इन दोनों क्षेत्रों के विद्यार्थियों, अध्यापकों को संरक्षण-शिक्षा अभियान से जोड़ा जा सके।

कार्यक्रम में राजकीय इंटर कॉलेज, बिरोड़ा के शिक्षक डा० नवीन सोराड़ी द्वारा जैव विविधता संरक्षण एवं महत्वता नामक शीर्षक पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। उन्होनें बताया कि उत्तराखंड का भू-भाग मैदानी क्षेत्रों से होते हुए उच्च हिमालयी भू-क्षेत्र तक विस्तृत है जो कि उत्तराखंड राज्य की जैव-विविधता का मुख्य आधार है। यहाँ के मैदानी भू-भाग में ब्राहमी, गिलोय जैसे औषधीय पादपों की विविधता मिलती है जबकि उच्च हिमालयी क्षेत्र में घिघॉरू, थुनेर, कीड़ा-जड़ी आदि जैसे औषधीय पादप विद्यमान हैं जिनका उपयोग हर्बल, कास्मेटिक एवं फार्मास्युटिकल उद्योगों में बहुतायात में किया जा रहा है। चुँकि यहाँ पाये जाने वाली समस्त वनस्पतियों में औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में विद्यमान है अतः इनके संरक्षण एवं संर्वधन की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि इनके सतत् उपयोग को बढ़ाते हुए हर्बल, कास्मेटिक एवं दवा-निर्माण उद्योगों में उपयोग हो सके। इसी क्रम में गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा तथा जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान गोपेश्वर गत वर्षों से शोध एवं विकास कार्य करते आ रहे हैं। उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य को हर्बल स्टेट बनाने हेतु गोपेश्वर में जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान (एच.आर.डी.आई.) की स्थापना की गयी ताकि यह संस्थान औषधीय पादपों के कृषि कार्य करने वाले कृषकों का पंजीकरण, प्रशिक्षण एवं पादपों का वितरण आदि कार्य कर सके। चूँकि, हिमालयी भू-भाग उच्च गुणवत्ता वाले औषधीय पादपों के कृषिकरण हेतु सर्वोत्तम है अतः पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा की भूमिका इसमें बढ़ जाती है।

इसी संदर्भ में डा० सतीश आर्य, वरिष्ठ वैज्ञानिक, पर्यावरण संस्थान, कोसी, कटारमल, अल्मोड़ा ने अपने संबोधन में बताया कि संस्थान द्वारा विभिन्न परियोजनाओं के तहत उत्तराखंड राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय निवासीयों को जागरूक करने, कृषिकरण तकनीकों की जानकारी एवं प्रशिक्षण प्रदान करने, उच्च गुणवत्ता वाले पादपों का आंवटन करने तथा क्लस्टर कृषि को बढ़ावा देने हेतु कार्य करते आ रहा है। इसी संदर्भ में, राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन पोषित परियोजना के तहत पिथौरागढ़ जनपद के सीमावर्ती चौंदास भू-क्षेत्र में सात विविध संकटग्रस्त औषधीय पादपों वन हल्दी, सम्यों, कूट, कूटकी, जम्बू, गंद्रेणी, तेजपात आदि का वृहद कृषिकरण कार्य किया गया है तथा 100 से अधिक स्थानीय कृषकों को आजीविका वृद्धि हेतु इस पहल से जोड़ा गया है। साथ ही, श्री नारायण आश्रम में उच्च हिमालयी पादप नर्सरी को स्थापित किया है ताकि वहाँ के कृषकों को उच्च गुणवत्ता वाले पादप निःशुल्क एवं आवश्यकतानुसार आंवटित किये जा सके। इसके अलावा संस्थान की इन-हाउस 4 परियोजना के तहत अल्मोड़ा जनपद के ज्योली एवं बामनीगाढ़ ग्राम सभा में क्लस्टर कृषि को बढ़ावा देते हुए विगत एक वर्ष से कार्य किया जा रहा है। जिसके तहत वहॉ के स्थानीय निवासीयों को तेजपात, तिमूर, वनहल्दी एवं अन्य बहुउद्देशीय पादपों का निशुल्क वितरण, प्रशिक्षण आदि दिया जा रहा है। जिसका मुख्य उद्देश्य विविध औषधीय पादपों को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करना एवं स्थानीय समुदाय हेतु रोजगार के अवसर को बढ़ाना है।

कार्यक्रम के अंत में डा० के० चन्द्र शेखर, वरिष्ठ वैज्ञानिक, पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा द्वारा सभी प्रतिभागियों, श्री भानु प्रताप ब्लाक अधिकारी, डा० नवीन सोराड़ी, डा० आई०डी० भट्ट आदि को कार्यक्रम के सफलतापूर्वक संचालन हेतु धन्यवाद प्रेषित किया एवं भविष्य में भी सहयोग की अपेक्षा की गयी। इस कार्यक्रम में लोहाघाट, बाराकोट एवं अल्मोड़ा के 30 से अधिक छात्र-छात्राओं, अध्यापकों तथा शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया।