श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब, अल्मोड़ा में एक कवि गोष्ठी आयोजित हुई। इस कवि गोष्ठी में मुख्य अतिथि रूप में चर्चित साहित्यकार, गीतकार एवं कवि श्री महेशानंद गौड उपस्थित रहे। ़गोष्ठी की अध्यक्षता हिंदी साहित्य के वरि0 साहित्यकार एवं कवि प्रो0 देवसिंह पोखरिया ने की। हुक्का क्लब में आयोजित हुई कवि गोष्ठी में रंगकर्मी एवं साहित्यकार त्रिभुवन गिरि महाराज, रंगकर्मी एवं हुक्का क्लब के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद तिवारी एवं श्री विनीत बिष्ट साहित्य गोष्ठी के अध्यक्ष प्रो0 देवसिंह पोखरिया ने क्लब की ओर से मुख्य अतिथि श्री महेशानंद गौड़ का शाॅल ओढाकर स्वागत किया।
श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब के अध्यक्ष रंगकर्मी राजेन्द्र प्रसाद तिवारी ने स्वागत करते हुए कहा कि श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब, अल्मोड़ा में वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षक महेशानंद जी एवं चर्चित कवि/कवयित्रियों का आगमन हुआ है। इस साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था में इन कवियों/साहित्यकारों का आगमन होना हमें गौरवांवित करता है। संस्था में साहित्यकारों/कवियों के आने से से हमें हर्ष हुआ है। यह हमारे लिए कीमती क्षण है। उन्होंने सभी कवियों, रंगकर्मियों, साहित्यकारों, समाजसेवियों का स्वागत किया।
रंगकर्मी दीवान कनवाल ने कवि महेशानंद गौड़ के गीत ‘डाना रूनै रयूं, मैं काना रूंन रयूं। इकैलि पराणि ल्हिी, कां कां नि गयूं‘  का गायन किया।
वरि0 कवि एवं उपन्यासकार श्री श्याम सिंह कुटौला ने अपनी पंक्तियां सुनाते हुए कहा-हम मनुज हैं इस धरा के, तुम निरा जड़ मत समझना।
वरि0 कवि नवीन सिंह बिष्ट ने ‘सांझ की पलकें झुकी दिनकर गए अवसान को, हिमशिखर रक्तिम हुए, मानो लली वृषभानु हो।‘  
कवि डाॅ0 ललित चंद्र जोशी ‘योगी‘ ने ‘मम्मी मोबाइल तैयार रखो तुम, मैं झटपट से आने वाला हूं। तुम तो हो गई बहुत पुरानी, मैं इक्कसवीं सदी वाला हूं।‘

डाॅ0 महेंद्र सिंह महरा ‘मधु‘ ने ‘लोग मिलनै रईं करार नी ए, मौसम बदलनै गईं बहार नीं एै। घुघुती, पंचमी, हर्याव सब न्हैं गईं, मनक भेटणक त्यार नीं एै।‘‘
कवि कंचन तिवारी ने कहा ‘एक दिनां उ दिगै मुलाकात है गे, नानछीना की बात याद एैगे।‘
रंगकर्मी एवं वरि0 कवि त्रिभुवन गिरी महाराज ने आंचलिक परिवेश की महिलाओं की स्थिति को दशाते हुए अपनी कविता यूं कही-‘कहीं कुछ दिन में आएंगे प्रियतम, आश लगाई बैठी होगी..क्या पहचान प्रिया की होगी।
हिंदी एवं कुमाउनी की वरि0 कवियित्री प्रो0 दिवा भट्ट ने ‘अब तो मौसम रोज हवा पर शक करता है, सहम समेटे हवा उम्मीदें चुपके चुपके, चलो तुम्हारा मौन कुरेंदे चुपके चुपके।‘
मुख्य अतिथि रूप में वरि0 कवि महेशानंद गौड़ ने अपनी कर्मस्थली अल्मोड़ा एवं इससे जुड़े हुए संस्मरणों को साझा किबया। उन्होंने अपनी कविता का पाठ करते हुए कहा  दर्द दुख और आसुओं की है कहानी जिंदगी, बूझती चिता की राख जैसी है जिंदगी। किससे कहें दामन हमारा फूलों सा महका …भी। सहरा के शोले सी खुद ही मिटानी जिंदगी।
अध्यक्षता करते हुए हिंदी एवं कुमाउनी के विद्वान प्रो0 देवसिंह पोखरिया ने कवि गोष्ठी में कवियों द्वारा पढ़ी गई रचनाओं पर समीक्षा की। उन्होंने कहा कि गोष्ठी में पढ़ी गई रचनाओं में दर्शन से लेकर समसामयिक परिस्थितियां दिखाई देती हैं। कवियों ने बखूबी ढंग से कविताओं में अपने समाज को बुना है। उन्होंने अपनी कविता का पाठ करते हुए कहा ‘रंगमहल के रंगमहल में, साथी मुझको भूल न जाना रे।‘  उन्होंने महेशानंद गौड़ के संबंध में कहा कि अल्मोड़ा साहित्यिक भूमि है। इस भूमि में गौड़ जी जैसे वरि0 कवियों ने साहित्यिक गतिविधियों को असीम ऊँचाईयां दी हैं।
इस अवसर पर पहरू के संपादक डाॅ0 हयात सिंह रावत ने कहा  कि कवि गौड़ के समय साहित्यिक गोष्ठियों का संचालन होता था। अल्मोड़ा में साहित्यिक गतिविधियों का संचालन होता रहा है।
इससे पूर्व कवि गोष्ठी में उपन्यासकार श्री श्याम सिंह कुटौला द्वारा रचित कुमाउनी नाटक ‘पांच लाप‘ का अतिथियों ने विमोचन किया।
गोष्ठी का संचालन डाॅ0 महेंद्र सिंह महरा ‘मधु‘ ने एवं आभार संस्थाध्यक्ष श्री राजेन्द्र प्रसाद तिवारी ने किया।
इस अवसर पर वरि0 कवि दीपक कार्की, कवि विनीत बिष्ट, धीरज साह, प्रभात लाल साह गंगोला (पूर्व अध्यक्ष, श्री लक्ष्मी भंडार), ललित मोहन साह, बब्बन उपे्रती, नारायण सिंह थापा, अर्जुन नयाल, शिब्बू नयाल, कंचन तिवारी, अजय साह, शरद साह,भरत गोस्वामी आदि संस्था के सदस्य एवं साहित्यकार मौजूद रहे।