छंजर सभा अल्मोड़ा के तत्वाधान में प्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को आयोजित होने वाली काव्य गोष्ठी वर्तमान कोरोना काल (कोविड-19)के कारण आज दि.29 मई की सायं को वर्चुअली/ऑनलाइनआयोजित की गई..कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर डॉ.दिवा भट्ट जी द्वारा की गई,मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.हेम चंद्र दुबे जी गरुड़(बागेश्वर) प्रतिष्ठित रहे तथा काव्य गोष्ठी का संचालन नीरज पंत जी द्वारा किया गया..

गोष्ठी का आरम्भ प्रचलित परंपरानुसार माँ सरस्वती वंदना के साथ डॉ.भगवती पनेरू जी द्वारा किया गया

तत्पश्चात स्थानीय एवं बाहरी क्षेत्रों से आमंत्रित कवि साहित्यकारों द्वारा कोरोना काल से जुड़ी विकट स्थितियों,वर्तमान विविध ज्वलंत एवं समसामयिक विषयों पर आधारित हिंदी व कुमाउनी में रचनाएं काव्य पाठ ग़ज़ल तथा गीत काव्य रूप में प्रस्तुत कीं..मुख्य अतिथि श्री दूबे जी द्वारा अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम में प्रासंगिक रचनाओं की सराहना की..गोष्ठी के अंत में अध्यक्षता कर रहीं विदुषी शिक्षाविद एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.दिवा भट्ट जी द्वारा सभी प्रतिभागी कवियों विशेषकर बाहरी क्षेत्रों से सम्मिलित हुए कवि साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए अपनी रचना प्रस्तुत की..अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. दिवा भट्ट जी द्वारा विभिन्न विधाओं/विविध विषयों पर आधारित रचनाओं की समीक्षा व पश्चपोषण करते हुए महत्वपूर्ण साहित्यिक मार्गदर्शन दिया तथा काव्य गोष्ठी के समापन की औपचारिक घोषणा की.. संचालन करते हुए नीरज पंत जी ने सभी का आभार एवं छंजर सभा के तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रमों में सतत प्रतिभागिता करने का आह्वान किया..

काव्य गोष्ठी में प्रस्तुत रचनाओं की एक झलक—

* ‘जय जय हो मयेड़ी सरस्वती मैय्या तेरी जयजयकार हैजो..’.

                        सरस्वती वंदना — डॉ.भगवती पनेरू

* ‘हाय कोरोना तूने तो जिंदगी का नज़ारा बदल दिया ‘…

                                              — संजय अग्रवाल

* ‘देदे जख्म कोई गर, मलहम लगाया कीजै

   बातों से मिले जख्म तो, फिर क्या किया कीजै…

                                            — सोनू उप्रेती “साँची”

*’ कहते हैं ,पिता पैड़ जैसा,खेतों में मेण जैसा।।

    लहलहाती खेत के वो पालनहार हैं(पिता)

    पर!माँ पैड़ की एक छाल है…

                         — डॉ.सुमन पान्डेय्,लोहाघाट (चम्पावत)

*’जो मिलाये वक्त़ से नज़रें,वही सच्चा इंसान है…

                          — बलवन्त नेगी (चौखुटिया)

* ‘वख्त ने इंसानियत  पर  से  पर्दा उठा दिया ,

   लाश सड़क पर पड़ी किसीने कांधा न दिया…

                             — नीरज पंत

*’अदावत  में  उठी आवाज़ को यूं छाँट देता है।

  लुटेरा  लूट से  दो – चार  सिक्के  बाँट  देता है।।

  हमारी  नौकरी  भी  आजकल अख़बार जैसी है।

  अगर  में सच बताता हूँ तो मालिक डाँट देता है…

                             —  मनीष पन्त, ग़ज़ल

*’हल देना हलधर भी देना,उग्रधूप है जलधर देना

धान खेत है समय समय पर,थोड़ा थोड़ा पानी देना…

                              — मोती प्रसाद साहू

*’उठती सोंधी सुगंध है,यह माटी है मेरे गांव की

 जब सिके चूल्हे में रोटी,देती सुगंध तन मन को है

 यही तो मेरा पहाड़ है, तो मेरा पहाड़ है…

                 — पुष्प लता जोशी हल्द्वानी(नैनीताल)

* ‘वे दौड़ने लगे घरों को छोड़ छोड़ कर घर उन्हें पुकारते रहे;

  रुको, रुको, हमें बचाओ,हमें इन ज्वालाओं के बीच

  अकेला छोड़कर मत जाओ, घरों से निकली चीखें

  उनकी पीठों से टकराकर चिपक गई मगर वे अपनी पीठ पर

  चिपकीआवाजों को नहीं पढ़ पा रहे थे…

                               —  डॉ.दिवा भट्ट

* ‘छुट्टी के भै एक दिनैकी सिबौ,

   घरवाईल बनरी ग्वाव बना   दी…

                                — डॉ0डी0एस0बोरा

*’सावधान हम आज, रहें घर में ही रहकर।

 कोरोना से दूर,  मास्क मुँह सदा पहनकर।।

 रह के दो गज दूर, फासला यदि हम रक्खें।

 रहें सुरक्षित जान, सभी बातों को देखें…

                           —  डॉ.धाराबल्लभ पांडेय ‘आलोक’

*’बहुत दिन हुए गीत आते नहीं है,

 स्वर अपने सरगम सजाते नहीं हैं।

 सघन नीड़ में बैठ कर सब परिंदे,

 मधुर ध्वनि में अब चहचहाते नहीं हैं।

                          — मीनू जोशी,गीतकाव्य

* ‘प्रिये तुम जब भी आना, मौन साथ लेकर आना

 ये शब्द बड़ा भ्रमित करते हैं,उलझाते हैं,तकरार कराते हैं

 शब्दकोष खाली कर,सब कुछ मौन में बतलाना

  प्रिये तुम..

                            —  चन्द्रा उप्रेती

*’उठलै सई धूँ भय, पैं चाहे उ चित बै उठौ।

  चाहे हिरदी बै उठौ, या कैकी कुड़ि बै उठौ।।

                              — त्रिभुवन गिरी महाराज

* ‘को बटी उँछै काहुणि जाँछै

   य बात तू किलै नि बतूनै…

                             — डॉ. हेमचंद्र दूबे गरुड़ (बागेश्वर)

*’ ज़रूरी नहीं कि चरागों से ही घर रौशन हो

  मैंने तो आज तक लंफू जलाकर ही उजाला किया है…

                               — विनोद पंत (हरिद्वार)

* ‘उठि ठाड़ हड़बड़ानै…

                                — आदित्य बोरा

* ‘ इंसानियत पर भारी पड़ गई हैवानियत

   जिसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है देश को…

~नीलम नेगी