अल्मोड़ा। सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ एजुकेशन एवं इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडीज इन एजुकेशन की ओर से जारी वेबिनार के चौथे दिन भारतीय कलाओं में जेंडर प्रस्तुतीकरण के बारे में विस्तारपूर्वक परिचर्चा की गई। संदर्भदाताओं ने बताया कि किस प्रकार पितृसत्तात्मक सोच के कारण जेंडर भेदभाव साफ नजर आता है। 

सोमवार को वेबिनार के चौथे दिने की संदर्भदाता प्रो इला साह ने वर्तमान समय एवं प्राचीन समय में भारतीय नारियों की स्थिति पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि किस तरह से समाज को आगे बढ़ाने में नारी शिक्षा की जरूरत है। बताया कि बिना नारी विकास के किसी भी समाज का उन्नयन करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि एक सुशिक्षित समाज के निर्माण में महिला अपना अमूल योगदान देतीं है। वहीं, विवि की दृश्यकला एवं चित्रकला विभाग की प्रो सोनू द्विवेदी शिवानी ने अपने व्याख्यान में कला की उपयोगिता पर गहन प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल से ही नारी जीवन में कला का महत्व रहा है। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में महिलाओं को कला के माध्यम से दयनीय स्थिति में दर्शाया जाता था। उन्होंने बताया कि अधिकांश पुरूष चित्रकारों की ओर से नारी पात्रों की उपेक्षा कर हेय सोच के साथ उकेरा जाता था। उन्होंने कहा कि शिक्षा संकाय और विभाग की जेंडर भेदभाव संबंधित वेबिनार करवाना अपने आप में एक सार्थक प्रयास है। आने वाले समय में शोधार्थियों, शिक्षाशास्त्र के प्रशिक्षुओं को जेडर रूढ़िवादिता से पार पाने में मील का पत्थर साबित होगा। वेबिनार में शिक्षा संकायाध्यक्ष प्रो विजयारानी ढ़ौंडियाल, प्रो भीमा मनराल, डॉ रिजवाना सिद्दीकी, डॉ संगीता पवार, डॉ किरण सती, डॉ प्रीति सिंह, अर्चना गोयल, लता जोशी, चित्रा, कल्पना मिश्रा, कमला, अंकिता, कहकशा खान सहित शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया।