भारत सरकार पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के तहत राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की पांचवी परियोजना मूल्यांकन कार्यशाला शुरू हो गई है। देश के हिमालयी राज्यों में संचालित अनुसंधान परियोजनाओं का विषय विशेषज्ञ दो दिन तक मूल्यांकन करेंगे। परियोजना संचालक ऑनलाईन मोड में परियोजना प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं। इस वेबीनार का उद्घाटन मंत्रालय की अपर सचिव श्रीमती बी0वी0 उमादेवी ने किया। उद्घाटन अवसर पर उन्होंने राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन को मंत्रालय का प्रमुख मिशन बताया और कहा कि हिमालयी क्षेत्र की चुनौतियों के समाधान के लिए विभिन्न अनुसंधान परियोजनाएं संचालित की जा रही है। उन्होंने कहा कि बीत सात सालों में हमने हिमालयी क्ष्ेात्र में जल, जैव विविधता संरक्षण के साथ आजीविका और कौशल विकास आदि क्षेत्रों में अनेक अभिनव अनुसंधान और प्रारूपों का विकास किया है। आज आवश्यकता है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों को समाजोन्मुखी बनाने की है। इस वेबीनार की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो0 वी के गौर ने औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े अनुसंधानों को व्यापक करने की बात कही।

इस अवसर पर एनएमएचएस नोडल अधिकारी एवं प्रभारी निदेशक इं0 किरीट कुमार ने बताया कि यह मूल्यांकन कार्यशाला अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसमें परियोजनाओं को समाजोन्मुखी और अभिनव शोध पद्धतियों के लिए प्रेरित किया जाएगा साथ ही नए शोध परिणामों को धरातलीय बनाने के प्रयास भी किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि जल संसाधन प्रबंधन, आजीविका संवर्धन, आधारभूत निर्माण, जैव विविधता संरक्षण और भौतिक संयोजकता क्षेत्र में कार्य कर रही 25 अनुसंधान परियोजनाओं का मूल्यांकन किया जा रहा है। आईआईटी जम्मू के डॉ नितिन जोशी, ने इस अवसर पर हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनओं की संभावना के साथ आकार में बढ़ने वाली ग्लेशियर झीलांे के अनुसंधान कार्यो का ब्यौरा दिया। एनआईटी सिक्किम के डॉ नुरूज्जमन, ने पश्चिम बंगाल और सिक्किम मंें पेयजल सुरक्षा हेतु कंप्यूटर आधारित डीएसएस प्रणाली पर किए जा रहे अनुसंधान की प्रगति के बारे में बताया।

आईआईटी मण्डी हिमाचल प्रदेश से डॉ जनप्रीत कौर, ने सौर प्रणाली आधारित जल शोधन प्रणाली के बारे मेंआईआईटी नई दिल्ली से डॉ जितेंद्र कुमार साहू, ने हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में घुरचूक और इलायची जैसे स्थानीय जैव संसधानों पर अनुसंधान के बारे में बताया।  एनआईटी अरूणांचलप्रदेश के सैकत कुमार जाना, ने बताया कि परियोजना के तहत किस प्रकार चाय बागानों के अवशेष से अनेक सौंदर्य प्रसाधन और जैव ईंधन (कोयला) तैयार किया जा रहा है। 

पूर्वोत्तर क्षेत्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान अरूणांचल प्रदेश से डॉ गोविंद पैंगिंग, ने अरूणांचल प्रदेश में लोक ज्ञान आधारित हस्तशिल्प, बुनकरी, और काष्ठकला के क्षेत्र में किए जा रहे दस्तावेजीकरण कार्याे की जानकारी दी।  वैंकटेशवर कालेज नई दिल्ली से डॉ निर्मल कुमार, ने अल्मोड़ा के खूंट क्षेत्र में ईकोटूरिज्म आधारित कार्यो, कश्मीर विश्वविद्यालय से डॉ अदिल गनी द्वारा हिमाचल प्रदेश और कश्मीर में महिला लोक ज्ञान आधारित दुग्द्य उत्पादों पर किए जा रहे अनुसंधान प्रगति के बारे में बताया। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली कृषि एवं वानिकी विश्वविद्यालय उत्तराखण्ड से अरविंद बिजलवांण ने गढ़वाल क्षेत्र में बहुमूल्य फफूद गैनोडर्मा के कृषिकरण पर चल रहे अनुसंधान, वाई एस परमार विश्वविद्यालय हिमाचलप्रदेश से डॉ के डी शर्मा द्वारा महिला आधारित खाद्य प्रसंस्करण केंद्र स्थापना और विभिन्न उत्पादों पर किए जा रहे अनुसंधानों के बारे में प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की।  केरला कें्रद्रीय विश्विद्यालय से डॉ प्लाटे सीनू द्वारा दार्जिलिंग क्षेत्र में मघुमक्खी आधारित पर्यटन और संरक्षण और अनुसंधान,  शेर-ए-कश्मीर विश्वविद्यालय जम्मू से डॉ फारूख अहमद लोन द्वारा जम्मू कश्मीर में सेब पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर किए जा रहे अनुसंधान,  फोर्थ पौराडिग्म संस्थान बैंगलूर से डॉ रमेश केवी द्वारा  हिमालयी पारिस्थितिकी में हस्तक्षेप रणनीतियों, आईएचबीटी पालमपुर हिमाचलप्रदेश से डॉ रक्षक कुमार द्वारा शीत  प्रदेशों में मानव मल के निस्तारण और कृषि उपयोग के लिए किए जा रहे अनुसंधान कार्याे का व्यौरा प्रस्तुत किया। प्रथम दिन के तकनीकी सत्रों में आईआईटी रूड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो0 ए0 के सर्राफ, वाड़िया संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डॉ एस0के0बरतरिया, आईआईटी हैदराबाद के डॉ रवूरी नागराजा, एनईआरआर्इ्रएसटी अरूणांचल के डॉ0 आर0एम0 पंत, केंद्रीय सड़क शोध संस्थान के डॉ किशोर कुमार ने परियोजना अनुसंधान कार्याे का मूल्यांकन किया। विशेषज्ञों ने परियोजना संचालकों को आवश्यक सुझाव के साथ गुणवत्ता पूर्ण शोध कार्य करने की सलाह दी।  इस अवसर पर संस्थान से डॉ संदीपन मुखर्जी, इं, सैयद अली, अंकित धनै, जोशी, आदि ने कार्यशाला में सहयोग किया।