डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों को यूंही भगवान का दर्जा नहीं दिया गया है। वे अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों को बेहतर सेवा देते हैं। जिसका जीता जाता उदाहरण शुक्रवार को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धौलछीना में देखने को मिला। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब सामान्य इलाज करना मुश्किल हो रहा है तब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धौलछीना के स्वास्थ्य कर्मियों ने मिसाल कायम की कोरोना पॉजिटिव पेशेंट की पीपी किट पहनकर इस काम मैं सफलता हासिल कर मानवता का सर ऊंचा किया! महिला की हालत देख पहले डॉक्टर ने महिला को हाय सेंटर रेफर करने का निर्णय लिया लेकिन इसी बीच महिला का स्वास्थ्य काफी बुखार हुआ ब्लड प्रेशर वह सांस की समस्या होने लगी तब डॉक्टर शुक्ला ने बिना देर किए प्रसव यही कराने का फैसला लिया डिलीवरी स्टाफ ने पीपीई किट पहनकर सुरक्षित प्रसव कराया। प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। सुरक्षित प्रसव के बाद स्वजनों में खुशी देखी गई। जानकारी के अनुसार विकासखंड के भैंसिया छाना के बकरेटी(कनारीछीना) गांव की सरिता देवी पत्नी राजेंद्र सिंह को शुक्रवार सुबह से तेज बुखार के साथ प्रसव पीड़ा शुरू हुई। परिजनों ने उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धौलछीना पहुंचाया। डॉ संजीव शुक्ला ने महिला का स्वास्थ्य परीक्षण किया तो महिला को काफी तेज बुखार मैं तप रही थी ड्यूटी पर लैब टेक्नीशियन ने महिला की कोरोना जांच की, रैपिड टेस्ट में महिला कोरोना पॉजिटिव मिली। जिसे परिजन वह स्वास्थ्य कर्मी काफी घबराए गए, इसी बीच महिला की प्रसव प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी। डॉक्टर शुक्ला ने बताया कि इन परिस्थितियों में महिला को हायर सेंटर रेफर करने का जोखिम नहीं ले सकते थे। तब आनन-फानन में डॉक्टर तथा स्वास्थ्य कर्मियों ने पीपीई किट पहन कर प्रसव कराने का निर्णय लिया। इसके बाद डॉक्टर संजीव शुक्ला (सी एच ओ) कम्युनिटी हेल्थ ऑफीसर नेहा रावत, स्टाफ नर्स राधा मेहरा ,तथा एएनएम कमला सुपियाल ने सुरक्षित प्रसव कराया। प्रसव के बाद महिला ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। इधर पॉजिटिव आने के बाद प्रसूता वह परिजनों ने पॉजिटिव रिपोर्ट के बावजूद सफल डिलीवरी होने पर राहत की सांस ली। वे डॉक्टर शुक्ला ने बताया बच्चे की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव है महिला का बेहतर इलाज चल रहा है महिला को 48 घंटे ऑब्जरवेशन मैं रखने के बाद निर्णय लिया जाएगा कि महिला को घर भेजा जाए या नहीं ! डॉ शुक्ला ने बताया बच्चे को 10 दिन तक मां से अलग रखा जाएगा तथा मां संक्रमित होने के कारण मां का दूध न देकर परिवार के अन्य महिला या फिर लेक्टोजन का दूध दिया जाएगा !फिर हाल दोनों को अलग-अलग वार्ड में रखने को कहा। चिकित्सा प्रभारी डॉ संजीव शुक्ला ने बताया कि प्रसव कराते समय हम स्वयं संक्रमित ना हो जाए इसका हमें गम नहीं था, लेकिन इस विषम परिस्थिति वह मुश्किल दौर में किसी की जान बचाई यह भी बहुत बड़ा धर्म है। प्रसूता के पास इतना समय नहीं था कि वह यहां से 30 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा पहुंच सके। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य कर्मियों के साहसिक फैसले से प्रसूता महिला तथा बच्चे की जान बच गई जिसकी स्थानीय लोगों द्वारा डॉक्टर शुक्ला की खूब सराहना की जा रही है।