अल्मोड़ा-आज प्रैस को जारी एक बयान में पूर्व विधायक एवम् संसदीय सचिव मनोज तिवारी ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा लाया गया कृषि बिल पूरी तरह से कृषक विरोधी है।उन्होंने कहा कि यह कोई एग्रीकल्चर रिफार्म नहीं है।इस बिल का मुख्य उद्देश्य उद्योगपतियों के लिए थोक खरीद करना,कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग/टारगेट फार्मिंग करना,किसानों की जमीन का अधिग्रहण करना,कृषि को लाइसेंस मुक्त करना,कृषि में एफ डी आई का रास्ता साफ करना,कृषि की सारी सब्सिडी खत्म करना,एग्रीकल्चर टैक्स का रास्ता बनाना,सट्टा ट्रेडिंग के बाजार को व्यापक बनाना,एफ सी आई को लगभग प्रभावहीन कर देना तथा भूमिसुधार प्रक्रिया को खत्म कर देना है।श्री तिवारी ने कहा कि यदि यह बिल अच्छा है तो अध्यादेश लाने से पहले सरकार ने सदन में इस बिल की चर्चा करानी चाहिए थी।उन्होंने कहा कि जब किसान ही बिल के खिलाफ है तब बिल की अच्छाई पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।भारत मे कृषि सुधार जरूरी है पर कृषि का स्टेकहोल्डर पूरा देश है।महामारी के इस दौर में हर व्यवस्था चरमरा चुकी है।व्यवस्था को मजबूत किए बिना कोई भी सुधार बेमानी है।उन्होंने कहा कि कृषि लाइसेंस मुक्त हो,एफ डी आई भी आए ये पूरा देश चाहता है पर मोदी जी का हर तथाकथित रिफार्म कुछ उद्योगपतियों के लिए होता है और देश की अर्थव्यवस्था को खत्म कर देता है।उन्होंने कहा कि रिलायंस का रिटेल व्यापार में आना और ये कृषि बिल, दोनो काफी हद तक जुड़े हुए लगते है।भारत मे रिटेल व्यापार एक ‘अघोषित मोनोपोली’ की ओर बढ़ रहा है।भारत में जनता की सोशल सिक्योरिटी, एनर्जी सिक्योरिटी,जॉब सिक्योरिटी खत्म की जा चुकी है।ये कृषि बिल जनता की ‘फूड सिक्योरिटी’ और ‘राइट टू फूड’ को खत्म कर देगा।उन्होंने स्पष्ट शब्दों में केन्द्र सरकार से इस अध्यादेश को किसान विरोधी करार देते हुए इस कृषि बिल को वापस लेने की मांग की।