विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा द्वारा 16 से 22 अगस्त 2021 के दौरान ”16वें गाजरघास जागरूकता सप्ताह“ का आयोजन किया गया। इस दौरान किसानों, छात्र-छात्राओं एवं आम जनता को गाजरघास के दुष्प्रभाव एवं इसके नियन्त्रण के बारें में संस्थान ने आकाशवाणी, अखबारों, सोशल मीडिया, कृषि विज्ञान केन्द्रों आदि के माध्यम से जगह-जगह संगोष्ठियां कर लोगों को गाजरघास के दुष्प्रभाव एवं नियंत्रण के बारे में जानकारी देकर जागरूक किया। गाजरघास यानी पार्थेनियम जहां एक ओर मानव स्वास्थ्य एवं पशुओं में विभिन्न समस्याएं पैदा करती हैं वहीं पर्यावरण को दूषित करती है एवं उत्पादकता को कम करते हुए जैव विविधिता को भी भारी नुकसान पहंुचाती है। गाजरघास देश में लगभग 350 लाख मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी है। यह मुख्यतः खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, बगीचों, पार्कों, स्कूलों, रिहायशी क्षेत्रों, सड़कों तथा रेलवे लाइनों के किनारों आदि पर बहुतायत में पायी जाती है। पिछले कुछ वर्षों से इसका प्रकोप सभी प्रकार की खाद्यान्न फसलों, सब्जियों एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है। वैसे तो गाजरघास पानी मिलने पर वर्ष भर फल-फूल सकती है परंतु वर्षा ऋतु में इसका अधिक अंकुरण होने पर यह एक भीषण खरपतवार का रूप ले लेती है। गाजरघास का पौधा लगभग 25,000 तक बीज बना सकता है एवं 3-4 महीनें में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष में इसकी 3-4 पीढ़ियां पूरी हो जाती है। गाजरघास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग (इरमेटाइटिस), एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा, आदि जैसी बीमारियाँ हो जाती हैं। अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है। गाजर घास के प्रभावी प्रबन्धन के लिए सबसे उपयुक्त है कि वर्षा ऋतु में इस घास को देखते ही जड़ समेत उखाड़कर नष्ट करें, ताकि इसके बीज बन ही ना पाये। गाजरघास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए इसका प्रयोग करें। पत्ती खाने वाले मैक्सिकन वीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा) नाम के कीट शत्रु को वर्षा ऋतु में गाजरघास पर छोड़ना चाहिए। गाजरघास के साथ अन्य वनस्पतियों को भी नष्ट करने के लिये ग्लाइफोसेट (1.0 से 1.5 प्रतिशत का घोल) और घास-कुल की वनस्पतियों को बचाते हुए केवल गाजरघास को नष्ट करने के लिए मेट्रिब्युजिन (0.3 से 0.5 प्रतिशत का घोल) या 2,4-डी (1 प्रतिशत का घोल) नाम के रसायनों का प्रयोग करें। 16वें गाजरघास जागरूकता सप्ताह कार्यक्रम के समन्वयक डाॅ० शेर सिंह, प्रधान वैज्ञानिक ने बताया कि गाजरघास के नियंत्रण से न केवल किसानों को लाभ होगा बल्कि पर्यावरण भी सही रहेगाा। संस्थान के निदेशक डाॅ० लक्ष्मी कान्त ने अपने सन्देश में सभी से आहवान किया कि सब मिलकर गाजरघास उन्मुलन कर कृषि उत्पादकता, स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं जैव-विविधता को बचाने के लिए एक साथ आगे आयें।